जेलमें मेराजैनसभा | Jaile Me Mera Jain Sabha

जेलमें मेराजैनसभा : सुखलाल | Jaile Me Mera Jain Sabha : Sukhlal

जेलमें मेराजैनसभा : सुखलाल | Jaile Me Mera Jain Sabha : Sukhlal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : जेलमें मेराजैनसभा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sukhlal | Sukhlal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 27.6MB है | पुस्तक में कुल 474 पृष्ठ हैं |नीचे जेलमें मेराजैनसभा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जेलमें मेराजैनसभा पुस्तक की श्रेणियां हैं : jain

Name of the Book is : Jaile Me Mera Jain Sabha | This Book is written by Sukhlal | To Read and Download More Books written by Sukhlal in Hindi, Please Click : | The size of this book is 27.6MB | This Book has 474 Pages | The Download link of the book "Jaile Me Mera Jain Sabha" is given above, you can downlaod Jaile Me Mera Jain Sabha from the above link for free | Jaile Me Mera Jain Sabha is posted under following categories jain |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 27.6MB
कुल पृष्ठ : 474

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इसका उत्तर यह है कि जीवनको सफल बनानक शास्त्र कारोने दो मार्ग पलाये हैं। एक गृहस्थधर्म, दूसरा यतिधर्म । पहिला माग सरल है और दुसरा माग कटिन । यदि हम पहिले मार्गको क्रम-क्रमसे तय करना प्रारम्भ कर दे तो एक दिन हम दूसरा मार्ग भी अवश्य तय कर सकेंगे। | गृहस्थधर्मके दो भाग है। एक तो वह जिसके अनुसार प्रत्येक गृहन्थ का चलना अनिवार्य है। दुमरा वह, जो गृहम्ध पुरपार्थ व पराक्रम करके अपने जीवन को सफल बनाना चाहते हैं, उनका प्रहरी करने योग्य हैं। | गृहम्ध धर्म का प्रथम भाग जो प्रत्येक मनुष्य को अनिवाय हैं, बहु निम्न प्रकार हैं:-
५-झाम नहीं खाना, :–शिकार नहीं खेलना, ३-शरात्र नहीं पीना, ४-जुआ नहीं बनना, ५-चारी नहीं करना, ६वेश्यागमन नहीं करना र ७–परदारा-संवन नहीं करना ।। । उपरोक्त मानो कुरुयमन मनुष्य की बुद्धि बिगड़ने वाले, बम को र चिनको प्रारपिन न होने देने वाले अब मनुष्यको भयंकर दुगनि प्रधान नरकने ले जाने वाले हैं। इन कारण इनका प्रत्येक प्राणीको न्याग करना चाहिये ।। ४ "तुमाघेखन, मॅस, मदः वेश्या व्यसन, शिकार ।। छोरी,' पररमणी-मण । मानौं ब्यमन निधार ॥''
-एक प्राचीन दोहा ।

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