जातक द्धितीय खण्ड | Jatak Vol.-2

जातक द्धितीय खण्ड | Jatak Vol.-2

जातक द्धितीय खण्ड | Jatak Vol.-2 के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : जातक द्धितीय खण्ड है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bhadant Anand Kausalyayan | Bhadant Anand Kausalyayan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 19.26 MB है | पुस्तक में कुल 492 पृष्ठ हैं |नीचे जातक द्धितीय खण्ड का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जातक द्धितीय खण्ड पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Jatak Vol.-2 | This Book is written by Bhadant Anand Kausalyayan | To Read and Download More Books written by Bhadant Anand Kausalyayan in Hindi, Please Click : | The size of this book is 19.26 MB | This Book has 492 Pages | The Download link of the book "Jatak Vol.-2 " is given above, you can downlaod Jatak Vol.-2 from the above link for free | Jatak Vol.-2 is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


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पुस्तक का साइज : 19.26 MB
कुल पृष्ठ : 492

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जातक के प्रथम खण्ड की वस्तु-कथा में २३-5-४१ को लिखा था| “प्रथम खण्ड में जातकट्ठकथा की निदानकथा और सौ कथाएँ हैं। दूसरे खण्ड में (जो प्रेस में है) दो सौ कथाएँ रहेंगी । इस प्रकार प्रमग दो खण्डों में तीन सौ कथाओं का समावेश हो जाएगा।" उक्त कथन के दस महीने बाढ़ आया हमें जातक (द्वितीय खण्ड) को प्रकाशित होते देख विशेष प्रसन्नता हो रहीं हैं। पाठकों ने प्रथम खण्ड का जौ स्वागत किया और विद्वानों ने उसकी जो समालोचना की है उसने हमें उत्साहित किया। हमें आशा थी कि हम इससे भी पहले इस खष्ट को प्रकाशित देख सकेंगे। किन्तु युद्ध के कारण मुद्रण साधनों की कठिनाइयाँ, विशेषकर कागज का अभाव, कुछ इतना बढ़ गया कि जातक के द्वितीय खण्ड के प्रकाशन के लिए हमें सम्मेलन के साहित्यमन्त्री श्री रामचन्द्र जी टंडन के विशेष परिश्रम का कृतज्ञता पूर्ण उल्लेख करना ही पड़ रहा है । पुस्तक का बड़ा अंश छप चुकने के बाद जातक के लिए जो कागज की एक दम कमी पड़ गई उसे श्री टण्डन जी ने ही अपनी प्रत्युत्पन्नमति से दूर किया । खर्च अधिक पड़ा किन्तु जातक हर दृष्टि से प्रथम खण्ड जैसा ही मुद्रित हुआ। हाँ, पहले इस द्वितीय खण्ड में जहाँ वो सौ कथाएँ देने का विचार था, पीछे डेढ़ सौ कथाएँ देना ही उचित ऊँचा दो सौ कथाएँ देने से द्वितीय खण्ड बहुत ही बड़ा हुआ जा रहा था।

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