काशी की पांडित्य परम्परा हिंदी पुस्तक | Kashi Ki Panditya Parampara Hindi Book

काशी की पांडित्य परम्परा हिंदी पुस्तक | Kashi Ki Panditya Parampara Hindi Book

काशी की पांडित्य परम्परा हिंदी पुस्तक | Kashi Ki Panditya Parampara Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 42.39 MB है | पुस्तक में कुल 0 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, history, india

Name of the Book is : | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 42.39 MB | This Book has 0 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories dharm, hindu, history, india |


पुस्तक की श्रेणी : , , ,
पुस्तक का साइज : 42.39 MB
कुल पृष्ठ : 0

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

थे निश्चल बैठना है । उचित तो यही होगा कि आप शिलाखण्ड की तरह पूर जी में तरह से निश्चेष्ट रहें । आपने अपनी पलकें नहीं झेंपनी हैं होंठ नहीं हिलान े हैं कान या नाक को खुरोचना नहीं है और जंभाई था डकार नहीं लेने हैं संपूर्ण रूप से निश्चेष्ट होके अपने शरीर को सघनहिमखण्ड की तरह रखन एंव है। जब आप आसन जमाने में लगे हैं तो आरंभ में संकल्प-विकल्पों काकोब तांता मन में उठता और लीन होता रहेगा। इसकी ओर ध्यान नहीं देन अन्य चाहिए । साथ ही शारीरिकविचलन जैसे बिलखना और छींकने की क्रिया से जैसी दूर रहना चाहिए। एक घण्टे के समय में आप इसका अनुभव करेंगे कि आपका मन अब सूक्ष्म विकल्पावस्था और शुद्धभाव में स्थित होने लगा है । धीरे-धीरे आपको इस बात का भी ज्ञान होने लगेगा कि आपका मन शांति और विश्राम से पूर्ण साधना के क्षेत्र की ओर शीघ्रता से अग्रसर हो रहा है। यहीं से आपका मन एकाग्र और सूक्ष्म होता जायेगा। भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में कहा है यतो यतो निश्चरति मनश्चज्चलमस्थिरम्‌ । ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव शमं नयेत । । एक जगह न टिकने वाला यह चंचल मन जिस जिस ओर से विषयों में भटकता रहता है उस उस ओर से इसका नियमन करो और इसे आत्म में ही लीन करो। जहां से मन विचलित होने लगा था फिर से उसी स्थान पर उसे दृढ़ रखने के लिए आपने कोई परिश्रम नहीं करना है । अभ्यास की इस प्रारम्भिक अवस्था आपने एकाग्रभाव से शांत रहना है । एक घण्टे के समय में एकाग्रता के आपको अनुसन्धान के आनन्द के छा जाने का अनुभव होगा । गीता । ं वह म जी के साधन भी सं वह स् _ कीए उठाय॑ घरेलू होत साक्षा जा आर्सा श्र

You might also like
1 Comment
  1. NITESH RAY says

    VERY GOD

Leave A Reply

Your email address will not be published.