कुछ फिंचर कुछ एकाकी | Kuch Fincher Kuch Ekaki

कुछ फिंचर कुछ एकाकी | Kuch Fincher Kuch Ekaki

कुछ फिंचर कुछ एकाकी | Kuch Fincher Kuch Ekaki

कुछ फिंचर कुछ एकाकी | Kuch Fincher Kuch Ekaki के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कुछ फिंचर कुछ एकाकी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bhagwat Sharan Upadhyaya | Bhagwat Sharan Upadhyaya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 12.0 MB है | पुस्तक में कुल 261 पृष्ठ हैं |नीचे कुछ फिंचर कुछ एकाकी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कुछ फिंचर कुछ एकाकी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge, comedy

Name of the Book is : Kuch Fincher Kuch Ekaki | This Book is written by Bhagwat Sharan Upadhyaya | To Read and Download More Books written by Bhagwat Sharan Upadhyaya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 12.0 MB | This Book has 261 Pages | The Download link of the book "Kuch Fincher Kuch Ekaki" is given above, you can downlaod Kuch Fincher Kuch Ekaki from the above link for free | Kuch Fincher Kuch Ekaki is posted under following categories Knowledge, comedy |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 12.0 MB
कुल पृष्ठ : 261

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

फिर बादशाह आजमने उसे सरोपा बख्शा, खिलअत दी मैं पर्दे के पीछे थी, तख्त के पीछे, बायें बाजू, जब कुँअर नजरका थाल लिये बादशाहुके सामने झुका मेरे पाससे ही वह गुजरा थासकीना। मेरे इतना पास आ गया था वह कि लगा, अगर हाथ बढ़ा दें तो उसे छू लूंगी । इतने पाससे मैंने उसे कभी न देखा था। तभी उसके जिस्मका जादू मुझे बेहाल कर चला । मैं उठ पड़ी। रोशनाराने मुझै उठते देखा। माथेपर छलकी पसीनेकी बूंदें भी शायद उसने देखीं पर मैं रुकी नहीं, रुक न सकी, सकीना।

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *