मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi

मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi

मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. Vishvambhar Nath Upadhyaya | Dr. Vishvambhar Nath Upadhyaya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 142.7 MB है | पुस्तक में कुल 348 पृष्ठ हैं |नीचे मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मध्यकालीन हिंदी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि पुस्तक की श्रेणियां हैं : history

Name of the Book is : Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi | This Book is written by Dr. Vishvambhar Nath Upadhyaya | To Read and Download More Books written by Dr. Vishvambhar Nath Upadhyaya in Hindi, Please Click : | The size of this book is 142.7 MB | This Book has 348 Pages | The Download link of the book "Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi" is given above, you can downlaod Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi from the above link for free | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prushthbhumi is posted under following categories history |

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पुस्तक का साइज : 142.7 MB
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हिन्दी के मध्यकालीन संत एवम् वैष्णव काव्य को समझने के लिए इस देश के नाना-मतमतान्तरों और साधनाओं का ज्ञान परमावश्यक है क्योंकि काव्य में अभिव्यक्त किसी युग का बुद्धितत्व', पूर्ववर्ती चिन्तनधारा को बिन। हृदयंगम किये हुए अस्पष्ट ही रहता है। काव्य एक संश्लिष्ट मानसिक-क्रिया है, उसमें कवि की चिन्तनधारा इतनी संकुल-पद्धति पर व्यक्त होती है कि उसके विश्लेषण के समय हमें आश्चर्य होता है; जब हम देखते हैं, कि कवि विशेष की 'अपने' वर्तमान के प्रति प्रतिक्रिया में भूतकाल को पर्याप्त मात्रा में सन्निवेश होता है । भूतकाल का यह प्रयोग, भूतकाल की पुनव्र्याख्या के रूप में भी हो सकता है और परंपरा के कुछ अंश को यथावत् स्वीकार करके भी हो सकता है । भविष्य सम्मुख न रहने से वर्तमान के समाधान के लिए प्रायः कवि और विचारक भूतकाल की ओर मुड़ते हैं ।

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