मगही लोक गीत के वृहद संग्रह | Magahi Lok Geet Ke Vrihad Sangrah के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : मगही लोक गीत के वृहद संग्रह है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. Ram Prasad Singh | Dr. Ram Prasad Singh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Dr. Ram Prasad Singh | इस पुस्तक का कुल साइज 61.7 MB है | पुस्तक में कुल 806 पृष्ठ हैं |नीचे मगही लोक गीत के वृहद संग्रह का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मगही लोक गीत के वृहद संग्रह पुस्तक की श्रेणियां हैं : literature
Name of the Book is : Magahi Lok Geet Ke Vrihad Sangrah | This Book is written by Dr. Ram Prasad Singh | To Read and Download More Books written by Dr. Ram Prasad Singh in Hindi, Please Click : Dr. Ram Prasad Singh | The size of this book is 61.7 MB | This Book has 806 Pages | The Download link of the book "Magahi Lok Geet Ke Vrihad Sangrah " is given above, you can downlaod Magahi Lok Geet Ke Vrihad Sangrah from the above link for free | Magahi Lok Geet Ke Vrihad Sangrah is posted under following categories literature |
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मगध के कुछ राजनेता, अंगरेजीदाँ, कभी-कभी हिन्दी मर्मज्ञ या लेखक भी भम्रोक्ति कर देते हैं कि क्षेत्रीय भापा-साहित्य के प्रचार-प्रसार से हिन्दी को बाधित किया जाता है, क्षेत्रीयता को बढ़ावा मिलता है और अंतत: देश की अखंडता पर प्रहार होता है। परंतु यह सुनकर हमें घोर आश्चर्य होता है कि आखिर हिन्दी क्या है ? इसको विकास परम्परा क्या है ? इसकी शब्द सम्पदा कहाँ से आई ? अमीर खुशरो ने किस भाषा का प्रयोग किया ? चंदबरदाई को विशाल शब्द-समूह के प्रयोग करने की क्षमता कहाँ से आई ? सूर-तुलसी की भाषा को क्या कहेंगे. ? सरहपा, गोरखनाथ, कबीर (सिद्धनाथ और संत परम्परा) और वद्यापति की भाषा क्या थी ? कहाँ से आई थी ? क्या इनकी भाषा और इनके साहित्य । में हिन्दी की समृद्धि नहीं हुई ? क्या उनलोगों ने अपनी अमर कृति में क्षेत्रीय भाषा का योग कर भारतीय अखंडता को बाधित करने का प्रयास किया ? अथवा उनकी भाषा और इस भाषा के साहित्य को निकाल दिया जाय (ब्रजी, अवधी, सधुक्कड़ी, डिंगल आदि) तो। हेन्दी कहाँ रहेगी ? इसके साहित्य में क्या बचेगा ?