मार्कंडेय पुराण | Markandey Puran

मार्कंडेय पुराण : वेदव्यास | Markandey Puran : Vedvyas

मार्कंडेय पुराण : वेदव्यास | Markandey Puran : Vedvyas के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मार्कंडेय पुराण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Ved Vyas | Ved Vyas की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 17.6 MB है | पुस्तक में कुल 296 पृष्ठ हैं |नीचे मार्कंडेय पुराण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मार्कंडेय पुराण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Markandey Puran | This Book is written by Ved Vyas | To Read and Download More Books written by Ved Vyas in Hindi, Please Click : | The size of this book is 17.6 MB | This Book has 296 Pages | The Download link of the book "Markandey Puran" is given above, you can downlaod Markandey Puran from the above link for free | Markandey Puran is posted under following categories dharm, hindu |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 17.6 MB
कुल पृष्ठ : 296

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

॥ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।। संक्षिप्त मार्कण्डेयपुराण
जैमिनि-मार्कण्डेय-संवाद-वपुको दुर्वासाका शाप यद्योगिभिर्भवभयार्तिविनाशयोग्य
और स्वाध्यायमें लगे हुए महामुनि मार्कण्डेयसे | मासाद्य वन्दितमतीव विविक्तचित्तैः। | पूछा-'भगवन्! महात्मा व्यासद्वारा प्रतिपादित नद्वः पुनातु हरिपादसरोजयुग्म
महाभारत अनेक शास्त्रोंके दोषरहित एवं उज्ज्वल | माविभवक्रमविलतिभूर्भुव:स्वः ॥१॥| सिद्धान्तोंसे परिपूर्ण है। यह सहज शुद्ध अथवा । मायात्स वः सकलकल्मषभेददक्षः
छन्द आदिको शुद्धिसे युक्त और साधु शब्दावलीसे क्षीरोदकुक्षिफणिभोगनिविष्टमूर्तिः ।। | सुशोभित है। इसमें पहले पूर्वपक्षका प्रतिपादन श्वासावधूतसलिलोत्कलिकाकरालः करके फिर सिद्धान्त-पक्षकी स्थापना की गयी है।
सिन्धुः प्रनृत्यमिव यस्य करोति सङ्गात् ॥ २॥ जैसे देवताओंमें विष्णु, मनुष्यों में ब्राह्मण तथा नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। । सम्पूर्ण आभूषणों में चूड़ामणि श्रेष्ठ है, जिस प्रकार देवी सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥ ३॥•| आयुधोंमें वज्र और इन्द्रियोंमें मन प्रधान माना | व्यासजीके शिष्य महातेजस्वी जैमिनिने तपस्या गया है, उसी प्रकार समस्त शास्त्रोंमें महाभारत |
उत्तम बताया गया है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थोंका वर्णन है। वे पुरुषार्थ कहीं तो परस्पर सम्बद्ध हैं और कहीं पृथक्पृथक् वर्णित हैं। इसके सिवा उनके अनुबन्धों (विषय, सम्बन्ध, प्रयोजन और अधिकारी)-का | भी इसमें वर्णन किया गया है।
'भगवन्! इस प्रकार यह महाभारत उपाख्यान वेदोंका विस्ताररूप है। इसमें बहुत-से विषयोंका प्रतिपादन किया गया है। मैं इसे यथार्थ रूपसे जानना चाहता हूँ और इसीलिये आपकी सेवामें उपस्थित हुआ हूँ। जगत्की सृष्टि, पालन और संहारके एकमात्र कारण सर्वव्यापी भगवान् जनार्दन निर्गुण होकर भी मनुष्यरूपमें कैसे प्रकट हुए तथा द्रुपदकुमारी कृष्णा अकेली ही पाँच पाण्डवोंकी

You might also like
1 Comment
  1. POONAM says

    IT IS A PART OF OUR REAL CULTURE AND US HOW TO LIVE ON THIS PERISHABLE EARTH. THANKS

Leave A Reply

Your email address will not be published.