पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा | Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha

पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा | Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha

पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा | Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 19.02 MB है | पुस्तक में कुल 288 पृष्ठ हैं |नीचे पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पातंजल योग दर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा पुस्तक की श्रेणियां हैं : health

Name of the Book is : Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : | The size of this book is 19.02 MB | This Book has 288 Pages | The Download link of the book "Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha " is given above, you can downlaod Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha from the above link for free | Patanjal Yog Darshan Ke Vishesh Pariprechhey Mein Aadhunik Yogacharyo Ke Mato ki Smiksha is posted under following categories health |

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पुस्तक का साइज : 19.02 MB
कुल पृष्ठ : 288

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मै कौशल किशोर, शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रमाणित करता हूँ कि मैने “पातञ्जल योगदर्शन के विशेष परिप्रेक्ष्य में आधुनिक योगाचार्यों के मतों की समीक्षा' विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डी.फिल. उपाधि के लिए प्रो. ज्ञान देवी श्रीवास्तव, भूतपूर्व अध्यक्ष संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के निर्देशन में यह शोध-प्रबन्ध पूरा किया है। मैने यह शोध-प्रबन्ध स्वतन्त्र रूप से पूरा किया है और जहाँ तक मुझे ज्ञात है इस विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय अथवा किसी अन्य विश्वविद्यालय में शोध कार्य नहीं किया गया है।

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