पतंजलि योग प्रदीप : अज्ञात | Patanjali Yog Pradeep : Unknown के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : पतंजलि योग प्रदीप है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 51 है | पुस्तक में कुल 588 पृष्ठ हैं |नीचे पतंजलि योग प्रदीप का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पतंजलि योग प्रदीप पुस्तक की श्रेणियां हैं : health, ayurveda
Name of the Book is : Patanjali Yog Pradeep | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 51 | This Book has 588 Pages | The Download link of the book "Patanjali Yog Pradeep" is given above, you can downlaod Patanjali Yog Pradeep from the above link for free | Patanjali Yog Pradeep is posted under following categories health, ayurveda |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
पहिला प्रकरण]
• पातञ्जलयोगदोप *
[दर्शन
दर्शनोंके चार प्रतिपाद्य विषय १. हेय–दुःखका वास्तविक स्वरूप क्या है, जो हेय' अर्थात् त्याज्य है? २. पहेत-दुःख कहाँसे उत्पन्न होता है, इसका वास्तविक कारण क्या है, जो 'होय' अर्थात् त्याज्य दुःखका वास्तविक हेतु' है ? ३. कान-दुःखका नितान्त अभाव क्या है, अर्थात् 'हान' किस अवस्थाका नाम है ? ४, हामोपाय-हानोपाय अर्थात् नितान्त दु:निवृत्तिका साधन क्या है?
| तीन मुख्य तत्त्व इन प्रॉपर विचार करते हुए तीन बातें और उपस्थित होती हैं ।
१. तनाव। आमा, पुरुष (जीव)-दुःख किसको होता है? जिसको दुःख होता है, उसका वास्तविक स्वरूप क्या है? यदि उसका दु:ख स्वाभाविक धर्म होता तो वह उससे बचनेका प्रयास ही न करता। इससे प्रतीत होता है कि वह कोई ऐसा तत्त्वा है, जिसका दुःख और जडता स्वाभाविक धर्म नहीं है। वह चेतनतत्व है। इस चेतन-आत्मा (पुरुष) के पूर्ण ज्ञानसे तीसरा प्रश्न 'हान' सुलझ जाता है। अर्थात् आत्माके यथार्थरूपके साक्षात्कार–‘स्वरूपस्थिति से दुःखका नितान्त अभाव हो जाता है।
३. जतत्त्व प्रकृति-इस चेतनतत्पसे भिन्न, इसके विपरीत, किसी और तत्वके माननेकी भी आवश्यकता होती है, जिसका धर्म दुःख है, जहाँसे दुःखकी उत्पत्ति होती है और जो इस चेतनतत्त्वसे विपरीत धर्मवाला है। वह जतत्त्व है, जिसको प्रकृति, माया आदि कहते हैं। इसके यथार्थरूपको समझ लेनेसे पहला और दूसरा दोनों प्रश्न सुलझ जाते हैं। अर्थात् दुःण इसी जड़तत्वका स्वाभाविक गुण है न कि आत्माका । जड़ और चेतनतत्त्वमें आसक्ति तथा अविवेकपूर्ण संयोग ही 'हेय' अर्थात् स्याज्य दुःखका वास्तविक स्वरूप है और चेतन तथा जड़तत्त्वका अविवेक अर्थात् मिथ्या ज्ञान या अविद्या 'हेयहेतु' अर्थात् त्याज्य दुःखका कारण है। चेतन और जडतत्त्वका विवेकपूर्ण ज्ञान 'हानोपाय'दुःखनिवृत्तिका मुख्य साधन है।
३. वेतनाव : पायाला, पुरुषविशेष (ईशर, ब्रह्म)-इन दोनों चेतन और जडतत्त्वोंके माननेके साथ एक तीसरे तत्वको भी मानना आवश्यक हो जाता है, जो पहले चेतनतत्त्व सवीश अनुकूल हो और दूसरे जडतत्वके विपरीत हो, अर्थात् जिसमें पूर्ण ज्ञान हो, जो सर्वज्ञ हो, सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान् हो, जिसमें दुःख, जहता और अज्ञानका नितान्त अभाव हो, जहाँतक आत्माको पहुँचना आत्माको अन्तिम ध्येय है, जो ज्ञानका पूर्ण भण्डार हो, जहाँसे ज्ञान पाकर आत्मा जड़-चेतनका विवेक प्राप्त कर सके और अविपाके बन्धनको तोड़कर 'होय' दुःखसे सर्वथा मुक्ति पा सके। इस तर्कके द्वारा हमें तीसरे और चौथे दोनों प्रश्नका उत्तर मिल जाता है, अर्थात् यही हान' है और हानौपाय' भी हो सकता है।
षड्दर्शन इन चारों रहस्यपूर्ण प्रश्नको समझानेके लिये दर्शनशास्त्रों में इन तीनों तत्वका छोटे-छोटे और सरल सूत्रोंमें युक्तियुक्त वर्णन किया गया है। इन दर्शनशास्त्रोंमें 'षड्दर्शन'–छः दर्शन–मुख्य हैं । १. मीमांसा,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!
very usefull
“पतंजलि योग प्रदीप” hindi pdf में उपलब्ध कराने का प्रयास व पुनीत कार्य निःसंदेह सराहनीय है, इसके लिए हम आपके कृतज्ञ हैं। परन्तु इस pdf में पुस्तक के पृष्ठ संख्या 261 से 267 तक एवं तीन अन्य पृष्ठ अर्थात कुल 10 पृष्ठ अनुपलब्ध है। कृपया संशोधित कर संपूर्ण pdf उपलव्ध कराने का कष्ट करें।
प्रतिक्रिया में विलम्ब के लिए क्षमा चाहते हैं |
सूचित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार सतीश शर्मा जी |
पुस्तक के अन्य संस्करण का लिंक भी संलग्न कर दिया गया है जिसमें कि समस्त 600 पेज हैं |
Ham apki sarahna kaise kare
Aapka kritya mahan avam prasansaniya hai
bahut bahut aabhar aapka ankit ji,
mitro evam sambandhiyo ke sath website share karein.
dhanywaad
प्रणाम महाशय जी मेरा एक सवाल था जो उस पुस्तक का नाम है पतंजलि प्रदीप क्या यह पुस्तक गीता प्रेस गोरखपुर से हैं या अन्य कहीं और से आपका बहुत-बहुत
Swami omanand’s commentary is wonderful and unparalleled to any other commentary on this subject. An English translation would benefit the whole humanity.