प्रकृति भी मुखर हो उठी | Prakrati Mukhar Ho Uthi

प्रकृति भी मुखर हो उठी | Prakrati Mukhar Ho Uthi

प्रकृति भी मुखर हो उठी | Prakrati Mukhar Ho Uthi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : प्रकृति भी मुखर हो उठी है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Munigyan | Munigyan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3 MB है | पुस्तक में कुल 142 पृष्ठ हैं |नीचे प्रकृति भी मुखर हो उठी का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | प्रकृति भी मुखर हो उठी पुस्तक की श्रेणियां हैं : Social

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पुस्तक का साइज : 3 MB
कुल पृष्ठ : 142

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साधुमार्ग की इस पवित्र पावन धारा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये बड़े-बड़े आचार्यों ने अपना-अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है । भगवान् महावीर के बाद अनेक बार आगमिक धरातल पर क्राति का प्रसग या है । जिसका उद्देश्य श्रमण संस्कृति को अक्षुण्ण बनाये रखने का रहा । ऐसी क्रान्ति धारा में क्रियोद्धारक, महान् प्राचार्य श्री हुक्मीचदजी म. सा. का नाम विशेष रूप से उभर कर सामने आता है । तत्कालीन युग में जहा शिथिलाचार व्यापक तौर पर फैलता जा रहा था ।

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