सांझ की बेला में हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Saanjh Ki Bela Me hindii book in pdf

सांझ की बेला में हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Saanjh Ki Bela Me hindii book in pdf

सांझ की बेला में हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Saanjh Ki Bela Me hindii book in pdf के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सांझ की बेला में है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sheelbhadra | Sheelbhadra की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3.83 MB है | पुस्तक में कुल 138 पृष्ठ हैं |नीचे सांझ की बेला में का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सांझ की बेला में पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized

Name of the Book is : Saanjh Ki Bela Me | This Book is written by Sheelbhadra | To Read and Download More Books written by Sheelbhadra in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3.83 MB | This Book has 138 Pages | The Download link of the book "Saanjh Ki Bela Me" is given above, you can downlaod Saanjh Ki Bela Me from the above link for free | Saanjh Ki Bela Me is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |

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पुस्तक का साइज : 3.83 MB
कुल पृष्ठ : 138

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भूमिका पांचवें दशक के बाद से ही अत्यंत तीव्र सामाजिम चेतना कथन भंगिमा में अत्यंत कम शब्दावली के प्रयोग की सावधानी सूक्ष्म निरीक्षण और निरासक्त वस्तुनिष्ठता के कौशल से शीलभद्र रचना करते आ रहे हैं। शीलभद्र इनका उपनाम है। इनका असली नाम है-रेवती मोहन दत्त चौधुरी । स्वयं की अनुभूति और बौद्धिक चेतना का संयोग इनकी कहानियो की अपनी खास विशेषता है । पारंपरिक शैली से एकदम अलग किस्म की होने तकश्रित होने तथा संख्या में काफी कम होने के कारण शीलभद्र की कहानियों को जनप्रियता प्राप्त करन के लिए सत्तर के दशक तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी । आको मधुपुर (फिर से पधुपुर) तर्पण आदि कहानी-संग्रहों में संकलित कहानियों के आधार पर कहा जा सकता है कि इनकी कहानियां अधिक बौद्धिक और चेतना निर्भर हैं। बहुत बाद की कहानियों में यह स्पप्ट रूप से देखा जा सकता है कि वे पारंपरिक कथा सर्जना चरित्रांकन और कथन शैली-सब तरह से अपनी पहले की कहानियों से बदल गई हैं। दरअसल शीलभद्र किसी भी पूर्व प्रतिष्ठित रचयिता का अनुकरण नहीं करते । यहां तक कि उनकी कोई भी अपनी एक कहानी अपनी भी किसी दूसरी कहानी का अनुकरण नहीं करती । सत्तर के दशक में असमिया साहित्य में सुप्रतिष्ठित श्रेष्ठ कहानीकारों की अग्रिम पंक्ति में गिने जाने की प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेने के बाद शीलभद्र जी ने उपन्यासों की रचना करना भी आरंभ कर दिया। मधुपर तरॉगिणी आगमनीर घाट आहत गरि (विशाल पीपल व्रक्ल) गोघूलि और अनुसंधान शीलभद्र के श्रेष्ठ उपन्यास हैं । इनमें से आरंभ के चार तो सत्तर के दशक में प्रकाशित हुए शेष दो अस्सी के दशक में छोटी कहानियों की भांति ही शीलभद्र के उपन्यास भी बौद्धिक चेतना पर ही निर्भर हैं। बधूपूर और गोधूलि आदि उपन्यासों में शीलभद्र ने कहानी के कथ्यपक्ष और रचना कौशल के क्षेत्र में अनेकानेक परिवर्तन ला दिए हैं । मधुपूर उपन्यास नाना प्रकार से पूर्व-परंपराओं से बिलकुल अलग किस्म का सर्वथा स्वतंत्र शैली का उपन्यास है। व्यक्ति और समाज के बीच आ उपस्थित हुए नाना प्रकार के अंतर्दद्ों कहानी कहने में शब्दों के कम-से-कम व्यवहार करने की

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