संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3 खण्ड-2 | Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2

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संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3 खण्ड-2 | Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2

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इस पुस्तक का नाम : संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3 खण्ड-2 है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kamtaprasad Jain | Kamtaprasad Jain की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 04.15 MB है | पुस्तक में कुल 196 पृष्ठ हैं |नीचे संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3 खण्ड-2 का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | संक्षिप्त जैन इतिहास भाग-3 खण्ड-2 पुस्तक की श्रेणियां हैं : history

Name of the Book is : Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2 | This Book is written by Kamtaprasad Jain | To Read and Download More Books written by Kamtaprasad Jain in Hindi, Please Click : | The size of this book is 04.15 MB | This Book has 196 Pages | The Download link of the book "Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2" is given above, you can downlaod Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2 from the above link for free | Sankshipt Jain Itihas Bhag-3 Khand-2 is posted under following categories history |

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पुस्तक का साइज : 04.15 MB
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संक्षिप्त जैन इतिहास' के चूर्व भागोंमें इम विषयका सप्रमाण स्पष्टीकरण किया जा चुका है; इसलिये उसी विषयको यहा दुहराना व्यर्थ है। उसपर ध्यान देनेकी एक खास बात यह है कि जैनधर्म वस्तुस्वरूप मात्र है-वह एक विज्ञान है। ऐसा कौनसा समय हो सकता है जिसमें जैनधर्मका अस्तित्व तात्विक रूपमें न रहा हो ? वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी महापुरुषों की देन है, जो तीर्थङ्कर कहलाते थे । इस काल में ऐसे पहले तीर्थङ्क। भगवान् ऋषभदेव ये । इस युगमें उन्होंने ही सर्व प्रथम सभ्यता, संस्कृति और धर्म का प्रतिपादन किया था ।

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