शेख निजामुद्दीन औलिया की जीवनी : खलीक अहमद निज़ामी | Shekh Nijamuddin Auliya Biography : Khaliq Ahmad Nizami

शेख निजामुद्दीन औलिया की जीवनी : खलीक अहमद निज़ामी | Shekh Nijamuddin Auliya Biography : Khaliq Ahmad Nizami

शेख निजामुद्दीन औलिया की जीवनी : खलीक अहमद निज़ामी | Shekh Nijamuddin Auliya Biography : Khaliq Ahmad Nizami के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : शेख निजामुद्दीन औलिया है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Khaliq Ahmad Nizami | Khaliq Ahmad Nizami की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3 MB है | पुस्तक में कुल 91 पृष्ठ हैं |नीचे शेख निजामुद्दीन औलिया का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | शेख निजामुद्दीन औलिया पुस्तक की श्रेणियां हैं : Biography, islam

Name of the Book is : Shekh Nijamuddin Auliya | This Book is written by Khaliq Ahmad Nizami | To Read and Download More Books written by Khaliq Ahmad Nizami in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3 MB | This Book has 91 Pages | The Download link of the book "Shekh Nijamuddin Auliya " is given above, you can downlaod Shekh Nijamuddin Auliya from the above link for free | Shekh Nijamuddin Auliya is posted under following categories Biography, islam |

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पुस्तक का साइज : 3 MB
कुल पृष्ठ : 91

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भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इतिहास में शेख़ निजामुद्दीन औलिया (1243-1325) के व्यक्तित्व एवं उनके महान कार्यों को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है । उन्होंने कमोबेश आधी शताब्दी दिल्ली में बैठकर इंसानी दिलों को प्रेम के धागे में पिरोने और सृष्टिकर्ता से उनका अटूट संबंध जोड़ने में व्यतीत की । अपने पीर-महात्मा बाबा फ़रीद गंजशकर की भांति वह सीते और जोडते थे । गरेबां चाक हो या टूटा हुआ दिल, जोड़ने में उनको एक आध्यात्मिक मादकता अनुभव होती थी । वियोग की जगह संयोग, घृणा की जगह प्रेम-इसी को उन्होंने अपना दृष्टिकोण बनाया था; और इसी के लिए रात-दिन संघर्ष करते थे । उन्होंने धर्म की वह क्रांतिकारी भावना प्रस्तुत की थी जिसमें लोक-सेवा को धार्मिक उपासना का दर्जा प्राप्त हो गया था । उन्होंने स्वयं कभी किसी राजा के आस्ताने पर हाजिरी नहीं दी, बल्कि दरबारी माहौल और प्रभाव से अपने आपको इतना दूर रखा कि उनकी ख़ानक़ाह दिल्ली में होते हुए भी दिल्ली राज्य का अंग न बन सकी । यहां का जीवन दूसरे ही सिद्धांतों पर ढला हुआ था । सरकारी आदेश यहां के शांत, आध्यात्मिक वातावरण को प्रभावित करने की शक्ति नहीं रखते थे । राजा और राजनीति दोनों से पृथक रहकर उन्होंने आदमगरी का कार्य किया और आध्यात्मिक भावना से परिपूर्ण लोगों की एक ऐसी नस्ल पैदा की जिसने अपने जीवन को नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों की सेवा में लगा दिया । उनकी ख़ानक़ाह से मानवता, आध्यात्मिकता और मानवमैत्री के स्रोत फूट-फूटकर सारे देश में फैल गए ।
जमाने ने कितने ही रंग बदले । राजनीतिक उतार-चढ़ाव की कितनी ही कथाएं विश्व-पटल पर लिखी गई, कितने ही राजा शीघ्र नष्ट होने वाले नजारों की भांति अपने तेज व प्रताप के जलवे दिखाकर सदा के लिए लुप्त हो गए । लेकिन अमीर खुसरो के अनुसार शेख शेखाधिपति की दशा
शाहंशहे बे सरीरो बेताज शाहानश में खाकपाये मोहताज

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