श्रील प्रभुपाद इसकोन के संस्थापकाचार्य हिंदी पुस्तक : रवीन्द्र स्वरूप दास | Shril Prabhupaad ISKON Ke Sansthapakacharya : Raveendra Swrup Das के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : श्रील प्रभुपाद है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Raveendra Swrup Das | Raveendra Swrup Das की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Raveendra Swrup Das | इस पुस्तक का कुल साइज 2 MB है | पुस्तक में कुल 122 पृष्ठ हैं |नीचे श्रील प्रभुपाद का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्रील प्रभुपाद पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, Knowledge
Name of the Book is : Shril Prabhupaad | This Book is written by Raveendra Swrup Das | To Read and Download More Books written by Raveendra Swrup Das in Hindi, Please Click : Raveendra Swrup Das | The size of this book is 2 MB | This Book has 122 Pages | The Download link of the book "Shril Prabhupaad" is given above, you can downlaod Shril Prabhupaad from the above link for free | Shril Prabhupaad is posted under following categories history, Knowledge |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
अब बोस्टन में इस्कॉन प्रेस में एक नई पुस्तक पर प्रभुपाद के नाम का गलत मुद्रण किया तब प्रमुपद गंभीर रूप से चित्त हो गए। श्रीमद्भागवतम् के द्वितीय स्कन्थ के एक छोटे अध्य में, कागज को जिल्द वाले आवरण पर उनका नाम केवल ए.सी. भक्तिवेदान्त लिखा हुआ था। प्रधानुसार उस पर "कुणकृपामृत तथा "स्वामी प्रभुपाद” अनिवागंत: लिखा जाना चाहिए था जिसे झाड़ दिया गया था। ल प्रभुपाद का नाम आयात्मिक महत्व से लगभग दाँत ही था। एक अन्य इस्कॉन प्रेस द्वारा प्रकाशित गुंधों में भी, प्रभुपाद का इस्कॉन के "आचार्ग" के रूप में वर्णन किया गया था, यद्यपि प्रभुपाद ने बार-बार इस वात पर बल दिया था कि वे संस्थापकाचार्य थे। उस समय तक अनेक आचार्ग में आध्यात्मिक मरु उपस्ति थे तथा भजन में और भी अनेक हॉग किन्तु कृ णमूर्ति श्रीश्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ही अन्तर्राष्ट्रीय कृणभावनामृत संग के एकमात्र संस्थापकाचार्य थे। वह स्थिति और अधिक खराब हो गई जब प्रभुपाद ने प्रथम बार नयाँ भागवतम् पुस्तक खोली और उसकी जिल्द टूट गई तथा पृष्ठ निकल कर बाहर फैल गए। प्रभुपाद का चेहरा क्रोध
से तमतमा गया। अहानन्द, "फॉलोईंग श्रील प्रभुपाद" वीडियो श्रृंखला में, इस प्रसंग के अपने व्यक्तिगत अनुस्मरण का उल्लेख करते हैं (जुलाई अगस्त 1970, साँस जसि }:
इस समय स्थिति ऐसी थी जैसी प्रभुपाद समझते थे कि संघ के नेताओं द्वारा आध्यात्मिक गुरु को न्यूनतम स्तर पर पहुँचा दिया गया था, अधिकांशतः तो मेरी ओर से ही। आध्यात्मिक गुरु के प्रति द्वेष व इल्प रूपी राग में में सबसे अधिक संक्रमित । लॉस ऐंजिलिस की इस यात्रा में इस्कॉन ग्रेस द्वारा, जिसका मैं अध्यक्ष घा, सव कार्य गलत हो रहे थे। पुस्तकों का मुद्रण हुआ