वक्तृत्व कला भाग 7 | Vaktritav Kala Part 7 के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : वक्तृत्व कला भाग 7 है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 5.3 MB है | पुस्तक में कुल 298 पृष्ठ हैं |नीचे वक्तृत्व कला भाग 7 का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | वक्तृत्व कला भाग 7 पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm
Name of the Book is : Vaktritav Kala Part 7 | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 5.3 MB | This Book has 298 Pages | The Download link of the book "Vaktritav Kala Part 7 " is given above, you can downlaod Vaktritav Kala Part 7 from the above link for free | Vaktritav Kala Part 7 is posted under following categories dharm |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
शताबधानी मुनिश्री धनराजजी जैनजगत् के यशस्वी प्रवक्ता है। उनका प्रवचन, वस्तुत प्रवचन होता है। श्रोताओं को अपने प्रस्तावित विपय पर केन्द्रित एव मन्त्रमुग्ध कर देना उनका सहज कर्म है। और यह उनका वक्तृत्व-एक बहुत बड़े व्यापक एव गभीर अध्ययन पर आधारित है । उनका सन्कृत-प्राकृत आदि प्राचीन भापाओ का ज्ञान विन्तृत है, साथ ही तलम्पर्शी भी मालूम होता है, उन्होने पाहित्य को केवल छुआ भर नहीं है, किन्तु ममग्नणनित के माथ उमें गहराई से अधिग्रहण किया है।