विहाग | Vihag के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : विहाग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Sumitra Kumari Sinha | Sumitra Kumari Sinha की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Sumitra Kumari Sinha | इस पुस्तक का कुल साइज 886 KB है | पुस्तक में कुल 98 पृष्ठ हैं |नीचे विहाग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | विहाग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry
Name of the Book is : Vihag | This Book is written by Sumitra Kumari Sinha | To Read and Download More Books written by Sumitra Kumari Sinha in Hindi, Please Click : Sumitra Kumari Sinha | The size of this book is 886 KB | This Book has 98 Pages | The Download link of the book "Vihag" is given above, you can downlaod Vihag from the above link for free | Vihag is posted under following categories Poetry |
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उस दूर विजन में, सजनि दूर, कोकिल का वह मधुस्नात बोल ! चातक का पी, पी, कहाँ करुण उन्माद बढ़ाता था अतोल ! वह उठती सुख दायिनी बात ; सखी,बीत गई वह सुभग रात ! खोले निकुंज के द्वार सज्जन, बिखराते थे निज श्वास-फूल मई अपने इन उच्छ्वासों में, पाला करती थी हृदय - शुल