विकृत चिंतन : रोग शोक का मूलभूत कारण हिंदी पुस्तक | Vikrit Chintan : Rog Shok Ka Moolbhoot Karan Hindi Book

विकृत चिंतन : रोग शोक का मूलभूत कारण हिंदी पुस्तक | Vikrit Chintan : Rog Shok Ka Moolbhoot Karan Hindi Book

विकृत चिंतन : रोग शोक का मूलभूत कारण हिंदी पुस्तक | Vikrit Chintan : Rog Shok Ka Moolbhoot Karan Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4.5 MB है | पुस्तक में कुल 64 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : health, inspirational

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पुस्तक का साइज : 4.5 MB
कुल पृष्ठ : 64

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ह् सरित्सागर में एक रोचक कथा आती है- चांडाल कुल में जन्मी एक कन्या को अपने कुलवंश से घृणा हो गई। युवावस्था में प्रवेश करते ही उसने निश्यय किया कि वह सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति से विवाह करेगी अन्यथा कौमार्य व्रत निभायेगी। इस महत्त्वाकांक्षा से अभिप्रेरित होकर वह सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति की खोज में निकल पड़ी। एक नगर में उसने एक बड़ा जुलुस जाते देखा। स्वर्ण अलंकारों से सुसज्जित हाथी पर राजा बैठा था। पीछे-पीछे हजारों की संख्या में सैनिक पैदल एवं घोड़े पर सवार राजा का अनुगमन कर रहे थे। कुछ युवतियाँ चैंवर दा रही थीं। यह सोचकर कि सबसे बडा व्यक्ति यही हो सकता है कन्या प्रफुल्लित हो उठी और पीछे-पीछे चल पड़ी। राजा से विवाह करने का उसने निर्णय लिया। मार्ग में एक संन्यासी गुजरा। राजा की दृष्टि जैसे ही संन्यासी पर पड़ी वह हाथी से उतर पड़ा और उसके चरणों में नमन किया। कन्या सोचने लगी कि राजा से बड़ा तो संन्यासी है। मुझे विवाह संन्यासी से करना चाहिए। राजा को छोड़कर वह सन्यासी के पीछे चलने लगी। आबादी से दूर जंगल में स्थित संन्यासी एक मन्दिर में पहुँचा। देवर्ति ्ति को प्रणाम करके वह ध्यानस्थ हो गया। किंकर्तव्यविमूढ़ बनी वह अपने निर्णय पर पश्चात्ताप करने लगी। भू को बड़ा जानकर उससे विवाह की आकांक्षा लिए वह वहीं बैठ गई। कुछ समय बाद मन्दिर में एक खु्ता आया अपनी सहज प्रकृति के अनुसार उसने मूर्ति के ऊपर ही मूत्र त्याग किया। महत्वाकांक्षी कन्या टन करने लगी। कूत्ता जैसे ही मन्दिर से निकला के योग्य वांछित पात्र जानकर वह उसके पीछे चल पड़ी। चलते-चलते कुत्ता एक चांडाल बस्ती में जा पहुँचा और एक झोपड़ी के जा ही हे दा डर दर एक हु बाहर । कु कक को जैसे ही देखा उसके में लौटकर पौँव को लगा। अपनी ही बस्ती और अपनी ही बिरादरी में ज्लुत और श्रेष्ठ विवाह योग्य पुरुष को देखकर वह अपने घिक्कारती रही। युवक के समक्ष कन्या ने विवाह का प्रस्ताव रखा। सुशील एवं रूपवती जानकर गधा |भाअअधक खयाल पथ रि00 आए एव निजात मिला यथा गए

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