आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश | Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh

आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश | Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh

आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश | Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh

आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश | Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Tulsi | Acharya Tulsi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 4.3 MB है | पुस्तक में कुल 224 पृष्ठ हैं |नीचे आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आचार्य श्री तुलसी के अमर संदेश पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, dharm

Name of the Book is : Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh | This Book is written by Acharya Tulsi | To Read and Download More Books written by Acharya Tulsi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 4.3 MB | This Book has 224 Pages | The Download link of the book "Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh" is given above, you can downlaod Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh from the above link for free | Acharya Shri Tulsi Ke Amar Sandesh is posted under following categories education, dharm |

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पुस्तक का साइज : 4.3 MB
कुल पृष्ठ : 224

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अर्थवादमें न जाएँ, यथार्थवादकी ओर चलें, तो भी यह कहना होगा कि कभी अर्थके लिये वाद था, आज अर्थका वाद है। पहली अभिसन्धि होती, तो मनुष्य परतन्त्र नहीं बनता, मूढ़ नहीं होता । अर्थके लिए अर्थको व्यवहार होता, तो विवाद नहीं बढ़ता । आज अर्थवादकी अपेक्षा 'अर्थ-विवाद' का प्रयोग मुझे अधिक उपयुक्त लगता है। प्रयोजन हो, न हो, जितना अर्थ-संग्रह हो जाय, उतना ही भला है। जमीनका धन जमीनमें गड़ा रह जाए, करोड़पति होनैका संकल्प तो अधूरा नहीं रहता । रोटी खानी प्रयोजन है, तो क्या 'अहं' की पूर्ति प्रयोजन नहीं ? बड़ोंबूढ़ोंका आदेश मानना विनय है, तो क्या आकाश जैसी विशालकाय और सनातन ‘तृष्णा' के शासनका उल्लंघन करना अविनय नहीं ?

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