संस्कार– क्रान्ति भाग-1 | Sanskar– Kranti Bhag- 1

संस्कार– क्रान्ति भाग-1 | Sanskar– Kranti Bhag- 1

संस्कार– क्रान्ति भाग-1 | Sanskar– Kranti Bhag- 1 के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : संस्कार – क्रान्ति भाग – १ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Acharya Shri Nanesh | Acharya Shri Nanesh की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 6 MB है | पुस्तक में कुल 180 पृष्ठ हैं |नीचे संस्कार – क्रान्ति भाग – १ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | संस्कार – क्रान्ति भाग – १ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm

Name of the Book is : Sanskar – Kranti Bhag – 1 | This Book is written by Acharya Shri Nanesh | To Read and Download More Books written by Acharya Shri Nanesh in Hindi, Please Click : | The size of this book is 6 MB | This Book has 180 Pages | The Download link of the book "Sanskar – Kranti Bhag – 1" is given above, you can downlaod Sanskar – Kranti Bhag – 1 from the above link for free | Sanskar – Kranti Bhag – 1 is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |

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पुस्तक का साइज : 6 MB
कुल पृष्ठ : 180

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हुक्मगच्छ के अष्टमाचार्य युग पुरुष श्री नानेश विश्व की उन विरल विभूतियों में हैं जिन्होंने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व से समाज को सम्यक् जीवन जीने की वह राह दिखाई जिस पर चलकर भव्य आत्माएँ अपने कर्मों का क्षय कर मोक्ष की अधिकारिणी बन सकती हैं। यद्यपि आचार्य श्री जी के भौतिक व्यक्तित्व का अवसान हो चुका है तथापि उनके द्वारा चलाये गये विविध अभियानों में वह सदा ही प्रतिच्छायित होता रहेगा। इस प्रकार उनका वह व्यक्त रूप ही पर्यवसित होकर उस कृतित्व में समाहित हो गया है जो उनके द्वारा विरचित साहित्य के रूप में उपलब्ध है। एक क्रान्तिदर्शी आचार्य का यह प्रदेय साहित्य की वह अनुपम निधि बन गया है जो सांसारिक प्राणियों के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता रहेगा। इस स्तम्भ से विकीर्ण होने वाली प्रकाश रश्मियाँ युगों-युगों तक आलोक धारा प्रवाहित करती रहे, इसके लिए यह आवश्यकता है कि न तो उन साहित्य रश्मियों को क्षीण होने दिया जाये न ही उनकी उपलब्धता वाधित होने दी जाये वरन् आवश्यक यह भी है कि सर्व सामान्यजनों हित उनकी सुलभता सुनिश्चित रखी जाये। इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ ने उस अनमोल साहित्यिक धरोहर को 'नानेश वाणी' पुस्तक श्रृंखला के अन्तर्गत प्रकाशित करने का निर्णय किया।

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