सूक्तिगंगाधर हिंदी पुस्तक | Sukti Gangaadhar Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 17.08 MB है | पुस्तक में कुल 235 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Poetry
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६ कुछ प्रसिद्ध संस्कृत सुभाषित ग्रल्थ इस प्रकार हैं - सुभाषितरत्नकोष सदुक्तिकर्णामूत सुक्तिमुक्तावली सुक्तिरत्वाकर शाजूँधरपद्धति सुभाषितावली सुभाषितसुधारतन- भाण्डागार सुभाषितरत्नभाण्डागार संस्कृतसुक्तिसागर सुक्तिमज्ञरी विद्याघर- सहस्राकर सुभाषितद्वारावली महासुभाषितसंग्रह आदि । संग्रहकर्ता सहदयों ने इनमें अपनी रुचि के अनुकूल सुक्तियों का संग्रह किया है। संस्कृत साहित्य के अपार काव्यात्मक सागर से निकाले गये थे सुक्तिमौक्तिक सहदयों के कण्ठ एवं वाणी को सदा अलडूक़ृत करते रहे हैं । मैंने अपने बाल्यकाल से ही उुज्यगुरुजनों के श्रीमुखों से तथा बाद में स्ययं पुराणकाव्यादि ग्रत्थों को पढ़कर कुछ ऐसे ही सुभाषित जो मुझे रुचिकर लगे संगृदह्दीत कर रक्खे थे । उन्हीं में से कुछ का स्वयं ह्वित्दी में दोहा में भावाचुवाद कर इस भावना से कि ह्िच्दी प्रेमियों को भी संस्कृत के सुभाषितों से परिचय हो इस संग्रह को मैं संस्कृत-हिन्दी-प्रेमी समाज के सम्मुख प्रस्तुव करता हूँ । इसके पाँच खण्ड या अध्याय हैं । इस संग्रहमग्रन्थ का नाम मैंने सुक्ति-गज्ाघर रक्खा । गड्ाघर भगवान शिव कहे जाते हैं । उन्हें पृच्चानन भी कहा जाता है । अत मैंने इन खण्डों या अध्यायों का नाम आनन रकक्खा । इनमें --विशेषोक्ति सामात्यतीति उक्ति अच्योक्ति रसोब्ति तथा देवस्तुति सम्बन्धी उक्तियाँ संगृह्दीत है । नीतिसम्बन्धी उक्तियों में कुछ विधि-निषेध-परक श्लोक भी हैं जो सामाजिक जीवन में पथिप्रदर्शक के रूप में लिये गये हैं । मैंने भावानुवाद ठेठ अवधी में जो प्रयाग जनपद तथा उसके आस-पास के भुभाग में बोली जाती है किया है । कभी-कभी श्लोक की बातें दोहे में कुछ घट-बढ़ भी गई है । जिन पुण्यश्लोक कविवरों की सूक्तियों को मैंने इसमें लिया है उन सबके थी चरणों में मैं कृतज्ञतापुर्वक नमन करता हूँ । इस सुक्ति संग्रह के प्रकाशन में उत्तर प्रदेश संस्कत-अकादमी ने जो आर्थिक सहायता दी उसके लिए मैं उसका सर्वात्मना हादिक आभार मानता हूँ । अकादमी के विद्वाद् एवं कुशल निदेशक श्री मधुकर ह्िंवेदी जी ने जो उदारता गुणग्राहिता एवं महाशयता दिखाई है उसके लिए कृतज्ञता प्रकट करने में भी मेरी वाणी अक्षम हो रही है। अन्त में संस्कृत-हिन्दी-अनुरागियों के करकमलों में इसे सौंपते हुए मैं पूर्ण विश्वस्त हूँ कि उन्हें यदि थे संस्कृत सुक्तियाँ मन की लगों तो इन दोहों पर भी उनकी स्तिख्व दृष्टि अवश्य पड़ेगी-- कीटोध्पि सुमन सज्ादारोहृति सतां शिर । स्वतन्त्रतादिवस श्ट्श३१ ई० विद्वदाश्रव चण्डिकाप्रसाद शुक्ल