विष्णु पुराण पीडीऍफ़ डाउनलोड मुफ्त | Vishnu Puran PDF Download Free |

विष्णु पुराण पीडीऍफ़ डाउनलोड मुफ्त | Vishnu Puran PDF Download Free |

विष्णु पुराण पीडीऍफ़ डाउनलोड मुफ्त | Vishnu Puran PDF Download Free | के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : विष्णु पुराण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 43.4 MB है | पुस्तक में कुल 625 पृष्ठ हैं |नीचे विष्णु पुराण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | विष्णु पुराण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu, Uncategorized

Name of the Book is : Vishnu Puran | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : | The size of this book is 43.4 MB | This Book has 625 Pages | The Download link of the book "Vishnu Puran" is given above, you can downlaod Vishnu Puran from the above link for free | Vishnu Puran is posted under following categories dharm, hindu, Uncategorized |

पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 43.4 MB
कुल पृष्ठ : 625

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ऊँ निवेदन अछ्टादश सहापुराणोंसें श्रीविष्णुपुराणका स्थान बहुत ऊँचा है। इसके रचयिता श्रीपराड्रारजी हैं। इसमें अन्य विधयोंके साथ भूगोल ज्योतिष कमेक्राण्ड राजवंश और श्रीकृष्ण-चरित्र आदि कई शरसंगोंका बड़ा ही अनूठा और चिशद्द वर्णन किया गया है । भक्ति और ज्ञानकी अन्त धारा तो इसमें स्तर ही प्रच्छन्नरूपसे बह रही हे । यद्यपि यह पुराण बिष्णुपरक है तो भी भगवान्‌ झंकरके छिये इसमें कहीं भी अनुदार भाव प्रकट नहीं किया गया । सम्पूर्ण ग्रन्थ में शिव जीका प्रसंग सम्भ वतः श्रीक्ृष्ण-बाणासुर-संत्राम में ह्दी डी है सो वहाँ स्वयं भगवान्‌ कृष्ण महादेव जीके साथ अपनी अभिन्नता प्रकट करते हुए श्रीमुखसे कहते हैं-- त्वया यद्मयं दत्त तद्दतसमखिले मया । मत्तोविभिन मात्मार्न द्रष्टुपहखि दाहुर ॥ छे5 ॥ यों स त्व॑ जगच्वेद सदेवाखुरमाघुषम्‌ । मत्तों नान्यद्शेपं यत्तरवं ज्ञातुमिद्दाइसि ॥ ८ ॥ अधिद्यामोदितात्यानः णुरुषा मिन्नदु्डिनः । चद्न्ति मेद॑ पश्यन्ति चाघयोरन्तरं हर ॥ ४९ ॥ (अंश ५ अध्याय देह ) हाँ तृतीय अंशमे मायासाह के प्रसंगसें बौद्ध और जेनियोंके प्रति कुछ कटान अवश्य किये गये है | परन्तु इसका चत्तरदायित्व में अन्थकारकी अपेक्षा उस प्रसंगको हो अधिक हैं । वहाँ कर्सकाण्डका प्रसंग है और उक्त दोनों सम्प्रदाय वैदिक क्मके बिरोधी हैं इसछिये उनके प्रति कुछ व्यंग चृत्ति हों जाना स्वाभाविक ही है । अस्तु ! आज सर्वान्तर्यामी सर्वेश्वरकी असीम कृपासे मैं इस ग्रन्थरत्मका हिन्दी-अजुवाद पाठकों के सम्मुख रखनेमें सफल हा सका हूँ-- इससे मुझे बड़ा हर्प हो रहा हैं। अभीतक हिन्दीमें इसका कोई भी अधिक अनुवाद श्रकाशित नहीं हुआ था । गीताप्रेसने इसे प्रकाशित करनेका उद्योग करके हिन्दी-साहित्यका बड़ा उपकार किया है। संस्कतमें इसके ऊपर विष्णुचिति और श्रीघरी दो टीकाएँ हैं जो बेंकटेश्वर स्टीम प्रेस बस्बईसे प्रकाशित हुई हैं । प्रस्तुत अनुवाद भी उन्दोंके आधारपर किया गया है तथा इसमें पूउयपाद महामहों पाध्याय पं० श्रीपड्वाननजी तकरत्नद्वारा सम्पादित बंगला-अनुवादसे थी अच्छो सहायता छी गयी . हे | इसके लिये मैं श्रीपण्डिवजीका अत्यन्त आमारी हूँ । अनुवादमें यथासम्भव मूढका ही भावाथ दिया गया एं.। जहाँ स्पष्ट करनेके छिये कोई वात उपरसे छिखी गयी है बहाँ [ ] ऐसा तथा जहाँ किसी झाब्दका भाव व्यक्त करनेक्रे लिये कुछ लिखा गया हे वहाँ (. ) ऐसा कोष्ठ दिया गया है । जो इलोक रसरण रखनेयोग्य समझे गये हैं उन्हें रेखाड्लित कर दिया गया है इससे पाठकोंके छिये श्रन्थको उपादेयता बहुत बढ़ जायगी । अन्तमें जिन चराचचरनियन्ता श्रीदरिकी श्रेरणासे मैंने योग्यता न होते हुए थी इस ओर बढ़नेका दुःलाहस किया है उनसे कमा माँगता हुआ उन छीछामयकी यह छीला उन्हींक चरणकमकोंमें समर्पित करता हूँ । खुरजा विनीत मार्ग० शु० २ सं० १९९० अजुवादक

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