समाधी के सप्त द्वार – ओशो हिंदी पुस्तक डाउनलोड | Samadhi Ke Sapt Dwar – Osho Hindi Book PDF Download | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : समाधी के सप्त द्वार है | इस पुस्तक के लेखक हैं : osho | osho की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : osho | इस पुस्तक का कुल साइज 2.04 MB है | पुस्तक में कुल 290 पृष्ठ हैं |नीचे समाधी के सप्त द्वार का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | समाधी के सप्त द्वार पुस्तक की श्रेणियां हैं : Spirituality -Adhyatm
Name of the Book is : Samadhi Ke Sapt Dwar | This Book is written by osho | To Read and Download More Books written by osho in Hindi, Please Click : osho | The size of this book is 2.04 MB | This Book has 290 Pages | The Download link of the book "Samadhi Ke Sapt Dwar" is given above, you can downlaod Samadhi Ke Sapt Dwar from the above link for free | Samadhi Ke Sapt Dwar is posted under following categories Spirituality -Adhyatm |
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समाधि के सप्त द्वार व्यर्थ ही कसौटी को हर किसी पके भीतर है। इसलिए मैं कहता हूं भरोसा देता हूं कि वह खोजी जा सकती है उसे आपने कभी खोया भी नहीं है। लेकिन उसकी पहली शर्त यह है कि हृदय से उसे खोजना फिर बाद में मस्तिष्क से बुद्धि से उसे कस लेना जांच लेना निकष का उपयोग करना लेकिन जब अनुभव हाथ में आ जाए तभी। अब मैं इन सूत्रों पर आपसे बात शुरू करूं। है उपाध्याय निर्णय हो चुका है मैं ज्ञान पाने के लिए प्यासा हूं। अब आपने गुहय मार्ग पर पड़े आवरण को हटा दिया है और महायान की शिक्षा दे दी है। आपका सेवक आपसे मार्गदर्शन के लिए तत्पर है। खोजी अभीप्सु अपने गुरु से कह रहा हैः हे उपाध्याय निर्णय हो चुका है। मैंने निर्णय कर लिया कि मैं तैयार हूं अब जहां आप मुझे ले चलें। यह निर्णय जिज्ञासु को साधक बना देता है। इतना ही फर्क है जिज्ञासु और साधक में। लेकिन यह फर्क बड़ा है यह फर्क इतना बड़ा है कि जिसका कोई हिसाब नहीं। क्योंकि जिज्ञासु पूछता रहता है पूछता रहता है प्रश्न करता रहता है और कहीं नहीं पहुंचता। उसकी तलाश उत्तर की तलाश है समाधान की नहीं। वह पूछता है एक प्रश्न ताकि उत्तर मिल जाए। एक प्रश्न का उत्तर मिल जाता है तो उस उत्तर से दस नए प्रश्न खड़े हो जाते हैं। उन दस के उत्तर खोजने निकल जाता है। कभी हो सकता है दस के उत्तर भी मिल जाएं तो दस हजार प्रश्न उन उत्तरों से खड़े हो जाएंगे। क्योंकि पूछनेवाला प्रश्नों के उत्तर से मिटता नहीं। पूछनेवाला तो भीतर है जिससे प्रश्न पैदा होते हैं। हम प्रश्न को मिटा लेते हैं लेकिन पूछनेवाला तो भीतर खड़ा है। जैसे कोई वृक्ष की एक शाखा को काट दे तो दस नई शाखाएं पैदा हो जाएंगी क्योंकि शाखाओं को जिस जड़ से रस मिल रहा है वह नीचे जमीन में दबी है। जिज्ञासु पत्तियों को तोड़ता रहता है शाखाओं को काटता रहता है प्रश्न तोड़ता रहता है उत्तर मिलते जाते हैं और नए प्रश्न निर्मित होते जाते हैं क्योंकि प्रश्न निर्माण करनेवाला भीतर है। जिज्ञासु कभी समाधान को उपलब्ध नहीं होता। जिज्ञासुओं से दर्शन का जन्म हुआ फिलासफी का। इसलिए दर्शन किसी निर्णय पर नहीं पहुंचता। अगर निर्णय प्रथम ही नहीं है तो अंतिम भी नहीं होगा और निर्णय अगर प्रथम है तो ही अंत में भी निर्णय हो सकेगा। अंत में उनमें वही प्रगट होता है जो प्रथम छिपा था मौजूद था। जो आदि में था वही अंत में प्रगट हो सकेगा। जो बीज में है वही वृक्ष में प्रगट होगा। बीज में ही जो नहीं वह वृक्ष में प्रगट नहीं होगा। जिज़ासु प्रश्न पूछता है उत्तर पा जाता है लेकिन समाधान नहीं। समाधान के लिए तो स्वयं को बदलना पड़ता है। यह जिज्ञासु जब कह रहा है कि हे उपाध्याय निर्णय हो चुका है तो यह कह रहा है कि अब मैं साधक बनने को तैयार हूं अब मैं पूछना ही नहीं चाहता हूं अब मैं उत्तर ही नहीं चाहता हूं अब मैं बदलना चाहता हूं स्वयं को अब मैं समाधान चाहता हूं। और समाधान तो उसे मिलता है जो समाधि को उपलब्ध होता है। ९0४ 6 ०0 290 00 //0/४४४/४४.05100४४0110 00171
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Sir agar koi book treatment ya ilaj vaghra ki ho to bahut accha hoga…
Bimariyo ke ilaj se related.
Or ha agar koi joint pain treatment (knee) se related ho to or accha rhga