प्रथ्वीराज रासो : हजारी प्रसाद द्विवेदी | Prathviraj Raso : Hajari Prasad Dwivedi |

प्रथ्वीराज रासो : हजारी प्रसाद द्विवेदी | Prathviraj Raso : Hajari Prasad Dwivedi |

प्रथ्वीराज रासो : हजारी प्रसाद द्विवेदी | Prathviraj Raso : Hajari Prasad Dwivedi | के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : प्रथ्वीराज रासो है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Hajari Prasad Dwivedi | Hajari Prasad Dwivedi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 6.8 MB है | पुस्तक में कुल 243 पृष्ठ हैं |नीचे प्रथ्वीराज रासो का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | प्रथ्वीराज रासो पुस्तक की श्रेणियां हैं : india, Poetry

Name of the Book is : Prathviraj Raso | This Book is written by Hajari Prasad Dwivedi | To Read and Download More Books written by Hajari Prasad Dwivedi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 6.8 MB | This Book has 243 Pages | The Download link of the book "Prathviraj Raso" is given above, you can downlaod Prathviraj Raso from the above link for free | Prathviraj Raso is posted under following categories india, Poetry |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 6.8 MB
कुल पृष्ठ : 243

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सबसे बड़ा समय इनपर पुर है जो संभवतः रासो का मूस कयास है। यह विरयास किया जाता है कि चन्द्र पृथ्वीराज श मित्र, कवि और सलाहकार था । रासो में वह शोनों रूप में चित्रित हैं। इस इंश के अनुसार दोनों के जन्म र माग की विधि भी एक है। इस प्रकार गादा काय रहनेने अभिन्न भिन्न की चा निश्चय ही सरल प्रामाणिक होनी चाहिए। यही सोचकर सुप्रसिद्ध विमुमा राय एशियाटिक सोसायटी ऑफ अंगात ने इस ग्रंथ का प्रकाशन प्रारंभ किया था। कुछ थोड़ा-सा संश प्रकाशित भी हो चुका = कि इस समय दारू वृतर को व्यराज विजय की एक खंडित प्रति हाम जी | उस पुस्तक मी परीक्षा करने में मार डा. वृतर इसा निष्कर्ष पर | पचे कि पृथ्वीराज विजय इतिहास / इष्टि से अधिक प्रामाणिक ग्रन्थ है और गृथ्वीराजरालो अयंत अप्रामाणिक, क्योंकि पृथ्वीराजकालीन अभिनेत्रों से पृथ्वी-. राजविजय में चयित पटनाएँ सो मिल जाती हैं लेकिन पृथयौराजरानी में खुसि घटनाएं नहीं मिलतीं । उनका पत्र सोसायटी के प्रोक्षप्त ( माप विवरण) में मारा गया और पृथ्वीराजस्रो का मकान बंद कर दिया गया। इन दिनों के युरोपियन विद्वान् नष्पदेश की रचनाओं का मष दो दृश्यों से होकते थेऐतिहाधिक तथ्यों को प्राप्त करने और भाषाशासय रुपाशा को गुमाने की दृष्टि से । रासो से यह दृश्य विद नहीं होता था। किशन ही ऐसी अनमत वा इस पुस्तक में मिली तो इसके ऐतिहासिक रूप को निर्विवाद रूप से गलत साबित करती थी । पृनौशजविजय के अनुसार पृथ्वीराज सोमेश्वर और कपूरची के पुत्र थे । कपूरचे चेदि-नरेश की कन्या थी। जब पुत्र पृथ्वीराज नाबालिका धा जो जा ने मदमाश नामक मं1 की महायता से राज्य मंचन किया था। यह बात अभिजे से किती हैं। इधर १० रासो के अनुसार ये दिक्ती के राजा अनंगपात की पुत्री के ताके थे । मजेदार बात यह है कि पृ० विजय में संबरवाई नामक किसी कवि का नाम नहीं है। एक राष्ट्र चन्द्रराज बवि का उल्लेख अपत्य है परंथ उसे वृद्ध विद्वानों ने कश्मीरी छवि पन्क से आज माना है। दूसरी ओ बहुत सो अनैतिहासिक वा] रासो में मिलती है।
| सात-श्रीं शताब्दी से इस देश में ऐतिहासिक म्या के नाम पर काब्य लिने की प्रथा सून्य चली। इन्हीं दिनों ईरान के क्या झिल्य में भी इस प्रथा का शयेश हुषा । इस काल में उत्तर-पश्चिमी कौमांस से बहुत सी जातियों । प्रवेश इस देश में होता रहा। वे राउमापन करने में भी समर्थ हुई। उता नहीं कि इन जातियों को स्वदेशी प्रथा के अपा-क्या हैं इस देश में
सही। फिल्म में नये-नये सावन का प्रवेश इस काल में इला अवश्य । संभवतः ऐतिहासिक पुरुपों के नाम पर ज्ञाव्य तिरगे या शिखाने की चमन भी के संसर्ग झा पक्ष हो । परंतु भारतीय कवियों ने ऐतिहासिक नाम भर हिवा, रीता उनी ही पुरानी है जिसमें व-निनांश २ र अधिक ध्यान था, विवरण संवह को घोर कन, वपनाविलास का अधिक माग था, तथ्यनिरुपण आ कम; संभावनाओं की ओर अधिक 'सूचि थी, घटना व यो ; ज़खित आनंद की और अधिक फुकाव घा, विज्ञहित पायजा की भोर मा । इस प्रकार इतिहास को कला के हाथों परत इा पड़ा। ऐतिहासिक तथ्य जुन व्यों में कागा को उक्सा देने के साधन ज्ञान लिए गए हैं। राजा का विड़, शनि, उलझीदा, शैन-बन-विहार, वोला मिशाल, श्य-शास-प्रोत-ये काम से ही प्रमुख हो उठी हैं। बाद में क्रम इतिहास / अंश का हो गया और संभावनाओं का जोर वदना गया राजा के माशु होते हैं, उनसे युक्त होता है। इतिहास की दृष्टि में एक बुर हु, और भी तो हो सकते थे । कवि संभावना को बेलैमा । राजा के एकाथि विवाई होते थे। यह तथ्य अनेक विवाह की संभावना उत्पन्न शरता है, उन क्रीडा, और अग-बिर की संभावना की घोर संध करता है और कवि के थप ४०पना के छ त देने का अवसर देता है। उत्तराल के ऐतिहासि कार्य में इसकी भरमार है। ऐतिहानिक बिहान् के हमें संशयि तिला दिल हो जाता है।
| वनुतः इस वंश में इतिहाथ को 2ीक शामिक चर्च में कभी ना किया गया। पर ही तिहासिम -यक्ति को शशिक या कापनि कथा-नापक जैसा बना देने की गृति बही है। कुछ में देशी शक्ति का मारो मा कि पना दिया गया है जैसे राज, छ, कृष्ण थाGि - हु में कावनिक ख मा शारोप करके निजधरी कथा ॥

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11 Comments

  1. पृथ्वीराज रासो के लिए दोनों लिंक से पुस्तक को डाउनलोड करके मैंने देखा। इनमें से काव्य (poetry) वाली पुस्तक वास्तव में डाॅ•माताप्रसाद गुप्त द्वारा संपादित 'पृथ्वीराज रासउ' नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें 24 परिच्छेदों वाले विस्तृत भूमिका भाग के बाद पाठ भाग में मूल पाठ और उसका हिन्दी गद्यानुवाद भी दिया गया है।
    यह पुस्तक अपूर्ण अपलोड है। इसमें भूमिका भाग के बाद पाठ भाग में कुल 12 अध्याय में से 9 अध्याय तक ही अपलोड किया गया है। 3 अध्याय और परिशिष्ट आदि के 200 से अधिक पृष्ठ छूटे हुए हैं। यह पुस्तक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्त के छूटे हुए 200 से अधिक पृष्ठों को भी अपलोड करके पुस्तक सम्पूर्ण रूप में उपलब्ध कराने की कृपा अवश्य करें !

    (दूसरी पुस्तक गद्य (prose) वाली वास्तव में बिल्कुल भिन्न पुस्तक है — हजारीप्रसाद द्विवेदी और नामवर सिंह संपादित 'संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो' जो कि पूरी अपलोड है।)

  2. Apke dwara jo pdf file mein prithviraj raso book in pdf me jo 2nd page par jo likha hai ki prithviraj chauhan ke darbaar mein koi chand naam ka kavi tha bhi yaa nahi..ye bahut galat likha hai.qyuki me khud unke jaat ka hu wo bhi BRAHMBHATT THE AUR ME BHI BRAHMBHATT HOON.AUR UNKE BAARE MEIN ME APSE JYADA JANTA HOO.JO APNE LIKHA HAI NA USki mein kade sabdo mein aalochna karta hoon.aapki jaankari k liye batana chahunga ki agar chand bardai prithviraj chauhan ke sabse pehle or pasandida raajkavi the,aur to or unke angat salaahkar k sath saath sabse acche param mitra the.aur agar chand bardai prithviraj k saath na hote to prithviraj chauhan ki shaurya gathayein bhi nahi hoti,itihaas me unka naam dab kr reh jata.or prithvirj ne jab bina aankho k mhmd.ghori ko gazni me maara tha wo bhi prithviraj akele nahi kar pate bina chand bardai.jinhone ye veer ras ka mahan mahagranth likha hai,unhi ke kaavya me aap unhi ka ullekh ese kar rahe hai jese tha bhi ya nahi?ikya matlab hai iska?kripya apne sab vaapas le or itihaas k sath chechaad na karein..???

    • Harsh Ji,
      Pustak Hajari Prasad Dwivedi dwara rachit hai. Is pustak ki samagri me is website ka koi bhi yogdan nahi hai.

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