पहला अध्यापक : चिंगिज़ एत्मातोव हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Pehla Adhyapak : Chingeez Aitmatov Hindi Book Free PDF Download

पहला अध्यापक : चिंगिज़ एत्मातोव | Pehla Adhyapak : Chingeez Aitmatov

पहला अध्यापक : चिंगिज़ एत्मातोव | Pehla Adhyapak : Chingeez Aitmatov

पहला अध्यापक : चिंगिज़ एत्मातोव | Pehla Adhyapak : Chingeez Aitmatov के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पहला अध्यापक है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Bheeshma Sahani | Bheeshma Sahani की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.6 MB है | पुस्तक में कुल 36 पृष्ठ हैं |नीचे पहला अध्यापक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पहला अध्यापक पुस्तक की श्रेणियां हैं : children, Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Pehla Adhyapak | This Book is written by Bheeshma Sahani | To Read and Download More Books written by Bheeshma Sahani in Hindi, Please Click : | The size of this book is 1.6 MB | This Book has 36 Pages | The Download link of the book "Pehla Adhyapak" is given above, you can downlaod Pehla Adhyapak from the above link for free | Pehla Adhyapak is posted under following categories children, Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 1.6 MB
कुल पृष्ठ : 36

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पहाड़ियों को रात ने अपनी काली चादर से ढंक दिया था। भय के कारण सुघवृष लोए, मैंने बोरे को कंधे पर रखा और गांव की ओर भाग चली । मी बेहद डर लग रहा था और संभव है मैं रोने चिल्लाने तक होगी, लेकिन यह अनोखा और अकथनीय विचार मुझे ऐसा करने से रोके रहा कि अगर दूइर्शन मास्टर जी ने मुझे इस अटपटी अवस्था में यों रोते हुए देख लिया, तो वह क्या कहेंगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा, मुझे ऐसा जान पड़ता था कि मास्टर जी सचमुच मेरी ओर देख रहे हैं। । हांफती हुई, पसीने और धूल से लथपथ मैं घर पहुंचीं, जब मैंने देहली लांयकर घर के अंदर कदम रखा, तो मैं बेदम हो रही थी। चूल्हे के पास बैठी चाची भयानक सूरत बनाए मेरी तरफ लपकीं। वह बड़ी दुष्ट और उन औरत थी। | "तू कहां मर गई थी ?" वह झट से मेरे पास आई और मेरे मुंह से अभी एक शब्द भी न निकला था कि उसने बोरा मुझसे छीनकर एक ओर पटक दिया। दिन भर में तू सिर्फ इतने ही उपले बटोर पाई है ?'' जाहिर था कि मेरी सहेलियों ने आकर उसे खबर दे दी थी। “कलमुंही कहीं की ! स्कूल में तेरा क्या काम था ? तु वहीं क्यों नहीं मर गई ?” चाची ने मुझे कान से पकड़ा और सिर पर तड़तड़ थप्पड़ मारने लगी। "मनहूस कहीं की, हमारी जान की आफत ! भेटिए का बच्चा तो मेड़िया ही रहता है, पालतू कुत्ता नहीं बनता। लोगों के बच्चे सब कुछ घर में ला रहे हैं और यह घर से बाहर ले जा रही है। मैं तुझे स्कूल का मजा चखाऊगी ! उसके नजदीक तो अब जाकर देख, तेरी टांगें न तोड़ दीं तो कहना, मैं तेरी जान ले लूंगी। मरते दम तक तू स्कूल के नाम से धरती रहेगी,

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