मनुस्मृति : स्वामी पं. तुलसीराम | Manusmriti : Swami Pt. Tulsiram

मनुस्मृति : स्वामी पं. तुलसीराम | Manusmriti : Swami Pt. Tulsiram

मनुस्मृति : स्वामी पं. तुलसीराम | Manusmriti : Swami Pt. Tulsiram के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : मनुस्मृति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Swami Pt. Tulsiram | Swami Pt. Tulsiram की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 20.2MB है | पुस्तक में कुल 684 पृष्ठ हैं |नीचे मनुस्मृति का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मनुस्मृति पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

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पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 20.2MB
कुल पृष्ठ : 684

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यह शुद्धि गृहस्थों की है । अाचारियों की इस से दूनी और वानप्रस्थों की, तिगुनी तथा वतियो की चौगुनी है ॥१३७॥ मत मूत्र करने के पश्चात् शुद्ध होकर आचमन करे और चक्षुरादि का जल से स्पर्श करे । वेद पढ़ने के पूर्व समय तथा भोजन के समय सदा आचमन करे ॥१३८॥
त्रिचामेदपः पूर्व द्विप्रमृज्याचा मुजम् । शारीरं शौचमिच्छन्दि स्त्रीशूद्रस्त सकृत्सकृत् ॥१३॥ शूद्राणां मासिकं कार्य चपनं न्यायवर्चिनाम् । वैश्यवच्छौचकन्यश्च द्विजाच्छिष्टं च माजनम् ॥१४०|| शरीर के पवित्र करने की इच्छा वाला भजनोत्तर सीन वार चमन करे फिर दे। यार मुख घोवे और शुद्ध त्या स्त्री एक चार ॥१३९|| न्याय पर चलने वाले दो का मुण्डन महीने भर से कराना और सूतकादि में वैश्य के तुल्य शौचविधि तथा हिजो के भोजन से शेष भाजन है ॥१४॥ नेच्छिदं कुर्वते मुख्या विग्र पोऽङ्ग पतन्ति याः । नै श्मश्रु या गतान्यास्पा दन्तान्तरधिष्ठितम् ।।१४॥
मुख से निकले जा थूक के छोटे शरीर पर गिरते हैं वे और मुख में गई हुई मू और दांत के भीतर रहने वाला अन कुछ नहीं होता ॥१४१।। (इससे आगे एक पुस्तकमे लेक अषिक है
अजाश्वं सुखतामेष्यं गावे मेध्याश्च पूएतः । आपणाः पादतेामेभ्यः स्त्रियमेध्याय सर्गतः ॥ गौरमेच्या वाले प्रोक्ता अक्षा मेध्या तुः स्मृता ।।

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2 Comments

  1. मनुस्मृति Book mujhe bahot hi achha laga. स्वामी पं. तुलसीराम ji ka yeh mahatvpurn Book PDF file ke dwara provide karne ke liye aapka bahot bahot Dhanyawad….

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