अकबरी दरबार के हिंदी कवि : डॉ सरयू प्रसाद अग्रवाल | Akbari Darbaar Ke Hindi Kavi : Dr. Saryu Prasad Agrawal | के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : अकबरी दरबार के हिंदी कवि है | इस पुस्तक के लेखक हैं : saryuprasad agrawal | saryuprasad agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : saryuprasad agrawal | इस पुस्तक का कुल साइज 29.5 MB है | पुस्तक में कुल 479 पृष्ठ हैं |नीचे अकबरी दरबार के हिंदी कवि का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | अकबरी दरबार के हिंदी कवि पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india
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उपोद्घात ईसा की चौदहवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी के मध्य-भाग १ हिन्दी साहित्य में धाफि भादों की धगि विष प्रबलता के साथ प्रवाहित होती मिलती है, जिागा प्रसार मयतः चार रूप में हुआ। (१) शान और ओग की आध्यात्मिमा अनुभूति मा मन्तकाव्य, (२) नूफ़ी फकीरी का प्रेम काथ्य, (३) रामभक्ति-काव्य, (८) गुणभात फाग। इन र उपधाराशी के प्रमुख प्रतिनिधि कवि मशः संत कबीर, गुफ़ी जायसी, लोग इसका महात्मा तुलसीदास और भक्त-शिरोमणि सूरदास थे। ज्ञान और प्रेम भक्ति का हिन्दी साहित्य में जा निवृत्ति-पक धार्मिक प्रवाह प्रबल हुआ था वह देश की तत्कालीन परिस्थितियों से उद्दीप्त जुआ था। हिन्दी के चारण-काल की राजाश्रय प्रति उक्त युग में विदेशी शासन की अठोरता में ईश्वरीन्मुख हो गई थी। यह आन्दोलन राजाश्रम से मुक्त एक स्वतंत्र आन्दोलन था। अकबर के राजत्वकाल में (१५५६ से १६०५ ई०) देश ने बहुत समय के बाद गुन-शान्ति का समय देखा। अकबर ने हिन्दुओं का सहयोग प्राप्त कर के लिए उनकी रास्!ति, उनी भाषा, उनके साहित्य और उनकी कला को अपनाया। अकबरी दरबार में गंग्ण । भारतीय विद्या और कला को भारी प्रोत्साहन दिया । उस दरबार में जहाँ फ़ारसी और अरबी का गान होता था, वहाँ संस्कृत और हिन्दी का भी आदर हुआ। अगम्बर ने प्रणात गवैये, यड़े-बड़े विज्ञान और कवियों का अपने दरबार में स्वागत किया। उसका हिन्दी से इतना प्रेम बढ़ा कि वह स्वयं हिन्दी में काव्य-रचना करने लगा। केन्द्रित राजशक्ति के वाला और साहित्य-प्रेग में देशी राजाओं के साहित्य-प्रेम को भी फिर से जागृत कर दिया और में पूर्ववत् अगने आप में कविता और कलाविदों को सम्मान देने लगे।
जिस समय भक्ति के स्वतंत्र पत्र में तुलसी, परमानन्द और मीरा जैसी महान् विभूति उत्पन्न हुई उसी समय अकबर की सुरक्षा में नरहरि, गंग, रहीम आदि प्रतिभाशाली कवि-पुंगव हुए जिन्होंने लौकिक काव्य की रसधारा को पुनर्जीवित किया। इनमें रहीम, ब्रह्म तानसेन शाही दरबार के नवरत्नों में थे। ये कवि संत अथवा भक्त नहीं थे। उन्होंने अपनी कविता के विषय लोक की अनुभूतियों से चुने थे। श्रृंगार-भाव के अन्तर्गत माय-नायिकाओं को विविध प्रेम-अस्थाएँ, व्यावहारिक जीवन के अनुभवों से पूर्ण नीति तथा वीर-प्रशस्ति आदि लोक-भावनाएँ उनके काम में चित्रित हुई । भाषा की दृष्टि से इन शशी कवियों ने बहुधा ब्रजभाषा को ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया और मुक्तता वौली में रमनाएँ की। दोहा, सवैया, कवित्त और छप्पय छन्दों का इन्होंने विशेष प्रयोग किया। भरि गी रचनाओं की भाषा पुरानी अवधी है। अब्दुर्रहीम खानखाना नै प्रभाषा के साथ-साथ अवधी का भी प्रयोग अपने वरवा छन्दों में किया हैं। मुक्त शैली में सवैया, कवित्त और बरबा छन्दों के