आखिर क्यों : विष्णु प्रभाकर हिंदी पुस्तक मुफ्त डाउनलोड | Aakhir Kyon : Vishnu Prabhakar Hindi Book Free Download के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : आखिर क्यों है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Vishnu prabhakar | Vishnu prabhakar की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Vishnu prabhakar | इस पुस्तक का कुल साइज 4.56 MB है | पुस्तक में कुल 132 पृष्ठ हैं |नीचे आखिर क्यों का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | आखिर क्यों पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays, Uncategorized
Name of the Book is : Aakhir Kyon | This Book is written by Vishnu prabhakar | To Read and Download More Books written by Vishnu prabhakar in Hindi, Please Click : Vishnu prabhakar | The size of this book is 4.56 MB | This Book has 132 Pages | The Download link of the book "Aakhir Kyon" is given above, you can downlaod Aakhir Kyon from the above link for free | Aakhir Kyon is posted under following categories Stories, Novels & Plays, Uncategorized |
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भूमिका इस संग्रह मे जो कहानियां संकलित हुई है उनमें से सगभग सभी किसी न किसी रूप में पहले भी प्रकाशित हो चुकी हैं। उनमे से बहुत सग्रह अब अप्राप्पय है । इसलिए इस सग्रह की आवश्यकता अनुभव की गई। इन पंद्रह कहानियों में पांच कहानियों का सबध सीधे भारत विभाजन की ब्रासदी से है और वे सारी कहानियां सत्य पर आधारित हैं। मैं नहीं जानता उनके पात्र अब कहा हे। पर एक दिन उनसे या उनके रिश्तेदारों से मेरी भेंट निश्चय ही हुई थी। मैं स्वय नहीं जानता कि मै इस समस्या की गहराई में जा सकता या नहीं। अभी पिछले दिनों हिदू- मुसलमान के स्थान पर हिंदू और सिखों ने उसी समस्या को बडे भयानक रूप में हमारे सामने उभार और स्पष्ट रूप से इस ओर संकेत किया कि हिंदू और मुसलमान या हिंदू और सिख होना इंस समस्या के मूल में नही है। मूल में है मानब-स्वभाव की विरूपता। मूल रूप में समस्या जो प्रश्न उठाती है वह यही है कि आखिर मनुष्य लड़ता क्यों है? कया मात्र धर्म के नाम पर या धर्म को बहाना बनाकर बहुरूपी सत्ता को हत्याने की चाह के रूप में। इस संग्रह की अतिम आठ कहानिया कहीं न कहीं इस प्रश्ने को उभारने के प्रयत्न में लिखी गई हैं। वे भी संब सच्ची कहानियां हैं। कुछ अक्षरश सच्ची हैं और कुछ सत्य घटनाओं के आधार पर लिखी गई हैं। छुछ कहानियों में मै स्वय कभी एक पात्र हू। जैसे- अधूरी कहानी मे और मुरब्बी । सफर का साथी का प्रत्यक्ष दृष्टा भी हूं मैं। उनका संबंध किन्हीं दगों से नही है बल्कि युग-युग से चली आई उन कथाओं से है जिन्होंने आदमी को आदमी के पास लाने की कोशिश के बजाए उसे निरंतर दूर करने की कोशिश की। गले लगाकर भी गला काटने की चाह उसमे जराबर बनी रही | आखिर कयों इस कहामी में शकर इसी बात को लेकर परेशान है और इसीलिए वह उसको मारने आने वाले हत्यारे को अपने व्यवहार से सोचने को विवश कर देता है। निश्चय ही कुछ मित्र हृदय परिवर्तन की बात को मेरी कमजोरी मानेंगे । उस दोष को स्वीकार करते हुए मैं इतना ही कहूगा कि न सही वह एकमात्र रास्ता पर जो भी रास्ता है बह उसी के आसपास से होकर जाता है। अधूरी कहानी का वह मासूम अहमद हिंदू-मुसलमान के बीच के फासले को नहीं देख पाता । उसे तो बस अपने दोस्त की हमदर्दी पर नाज है। मुरब्बी कहानी में भी वही दोस्ती दो निर्मल हृदय बूढों के बीच फलती-फूलती है। नितांत एक बालक के रूप में मैंने उन दृश्यों को देखा हैं और तभी से मेरे मन में यह प्रश्न बार-बार उभर है आखिर क्यो हम अपनी दुर्बलताओं को मत और मनहब के पर्दे में छिपा लेते है। मेरा बेटा क्रहामी में यही प्रश्न तो उधर कर आता है मजहब बदल जाने के