हिंदी और नेपाली शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन : अज्ञात | Hindi Aur Nepali Shabdon Ka Tulnatmak Adhyayan : Unknown के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : हिंदी और नेपाली शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 17.2 MB है | पुस्तक में कुल 290 पृष्ठ हैं |नीचे हिंदी और नेपाली शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | हिंदी और नेपाली शब्दों का तुलनात्मक अध्ययन पुस्तक की श्रेणियां हैं : education, Knowledge
Name of the Book is : Hindi Aur Nepali Shabdon Ka Tulnatmak Adhyayan | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 17.2 MB | This Book has 290 Pages | The Download link of the book "Hindi Aur Nepali Shabdon Ka Tulnatmak Adhyayan" is given above, you can downlaod Hindi Aur Nepali Shabdon Ka Tulnatmak Adhyayan from the above link for free | Hindi Aur Nepali Shabdon Ka Tulnatmak Adhyayan is posted under following categories education, Knowledge |
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भुमिका :
भाषायें अपनी सांस्कृतिक विरासत में लोक-चेतना की संवाहिकाएँ होती हैं । विचार, विनिमय का साधन होते हुए भी वे लोक-चेतना का वैश्वीकरण इस रूप में प्रस्तुत करती हैं जहां मनुष्य केन्द्र में हो जाता है और निर्धारित सीमाएं अपने बन्धन को तोड़कर उसके स्वत्व को प्रमाणित करने का कारक बन जाया करती हैं । हिन्दी इस दृष्टि से विश्वपटल पर अपना पंव इस प्रकार से फैला रही है कि दुनिया के तमाम देश उसके सांस्कृतिक बोध से अपना रागात्मक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए अपना हाथ बढ़ा रहे हैं। भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी इस रूप में क्षेत्रीयता और प्रांतीयता की भावना से मुक्त रहकर अपने अन्दर गुणात्मक परिवर्तन उपस्थित करती रही है । पूर्वी हिन्दी और पश्चिमी हिन्दी के रूप में हिन्दी का इस प्रकार विभाजन एक तरह से भाषायी क्षेत्र में बांटने जैसा लगता है और जिसके चलते क्षेत्रवाद का जन्म भी होता है और सामाजिक एकता को भी नुकसान पहुंचता है । प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध क्षेत्रवा, और प्रान्तीयता की भावना से मुक्त र¢र हिन्दी की आधार बोली भोजपुरी और नेपाल की नेपाली के सांस्कृतिक बोध को रेखांकित करने का विनम्र प्रयास है और इस प्रयास में अपनी जन्मभूमि और उसके समीप स्थित सीमान्त देश नेपाल के सांस्कृतिक बोध को भौगोलिक पृष्ठभूमि के रूप में विवेचित और विश्लेषित करने का कार्य मैंने अपना स्वधर्म समझा था, इसका मूल कारण नेपाल का शैव मत का बाहुल्य भी माना जा सकता है, जिसका प्रभाव नाथपंथी योगियों की परम्परा में गोरखपुर की गोरक्षपीठ के प्रभाव के रूप में भी देखी जा सकती है । भारतीय धर्मसाधना का बहुदेववाद गोरखपुर और नेपाल की संस्कृतिक स्थिति में अद्वैतवाद का शब्द पर्याय बनता दिखायी पड़ता है ।
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