ओउम प्रणब रहस्य हिंदी पुस्तक | Aum Pranab Rahasya Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
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मम ९ डे के विचारदभात्र से ही श्रह्मज्ञान की परमावस्था और मुक्ति तथा अमरताकी स्थितिक्ों मघुष्य प्राप्त कर लेता है । तेछबारामिवच्छिन्न॑ दीर्नघंटानिनादुवत् । उपास्य प्रणवस्याश्र यस्त॑ वेद स वेद्वित्त् ॥३॥। ३ जो मघुष्य एक पात्रसे दूसरे पात्रमें निरन्तर गिरती हुई < तैलघारा या निरन्तर होनेवाले घंटानादके सह आओ ३म् की विचार- घारा में निमग्न रहता है वद्दी यथाथ में वेदों का ज्ञाता है । वुद्धतरखेन धीदोपशून्यमेकान्तवासिना । दीर्घ प्रणव्सुचार्य मनोराज्यं विजीयते ॥४॥। ४ भो३पू के निरन्तर जप से महदान्सत्ता अर्थात् परमेदवर का जाता मौनी बुद्धि के दोप से इधर-उधर भटकनेवाले मन पर पूर्णा- घिपत्य प्राप्त कर लेता है । नासाम्रे चुद्धिमारोप्य हस्तपादों च संयमेत मन सर्वत्र संगृद्य उरक्ार तत्र चिन्तयेतू ॥५॥॥। ८ हाथ और पेर के पूर्ण नियमन के साथ नासिका के झप्र- शागपर ध्यान जमा कर तथा मन को सब क्रियाओं से खींच कर मलुष्य को डकार का ध्यान करना चा हुए । 37 इत्येकाक्षरध्यानाघ विष्णुर्विष्णुत्वमाप्ततान ब्रह्मा ब्रह्मत्वमापत्नः शिवतामभत्रदू हिचः ॥ ६ ६ डे के ध्यान से विष्णु ने विष्णुत्व को ज्रह्माने ब्रह्मत्व को भर शिवने शिवत्द को प्राप्त किया ।
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