एक संत की अमूल्य शिक्षा हिंदी पुस्तक | Ek Sant Ki Amulya Shiksha Hindi Book

एक संत की अमूल्य शिक्षा हिंदी पुस्तक | Ek Sant Ki Amulya Shiksha Hindi Book

एक संत की अमूल्य शिक्षा हिंदी पुस्तक | Ek Sant Ki Amulya Shiksha Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : है | इस पुस्तक के लेखक हैं : | की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 0.33 MB है | पुस्तक में कुल 8 पृष्ठ हैं |नीचे का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm

Name of the Book is : | This Book is written by | To Read and Download More Books written by in Hindi, Please Click : | The size of this book is 0.33 MB | This Book has 8 Pages | The Download link of the book "" is given above, you can downlaod from the above link for free | is posted under following categories dharm |


पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 0.33 MB
कुल पृष्ठ : 8

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

एक सन्तकी अमूल्य शिक्षा ६९ घरमें किसीकी मृत्यु होनेपर सत्संग मन्दिर और तीर्थ -इन तीनोंमें शोक नहीं रखना चाहिये थात्‌ इन तीनों जगह जरूर जाना चाहिये। इनमें वी सत्संग विशेष है। सत्संगसे शोकका नाश होता। है। 9० किसीकी मृत्युसे दुःख होता है तो इसके दो कारण हैं- उससे सुख लिया है और उससे आशा रखी है। मृतात्माकी शान्ति और अपना शोक दूर करनेके लिये तीन उपाय करने चाहिये- १ पृतात्माको भगवान्‌के चरणोंमें बैठा देखें २ उसके निमित्त गीता रामायण भागवत विष्णुसहस्रनाम आदिका पाठ करवायें ३ गरीब बालकों को मिठाई बाँटें। ११ घरका कोई मृत व्यक्ति बार-बार स्वप्नमें थे तो उसके निमित्त गीता-रामायणका पाठ करें गरीब बालकों को मिठाई खिलायें। किसी अच्छे सम एक सन्तकी अमूल्य शिक्षा ब्राह्मणसे गया-श्राद्ध करवायें। उसी मृतात्माकी अधिक याद आती है जिसका हमपर ऋण है। उससे जितना सुख-आराम लिया है उससे अधिक सुख-आराम उसे न दिया जाय तबतक उस ऋण रहता है। जबतक ऋण रहेगा तबतक उसकी याद आती रहेगी। ७२ यह नियम है कि दुःखी व्यक्ति ही दूसरेव दुःख देता है। यदि कोई प्रेतात्मा दुःख दे रही है तो समझना चाहिये कि वह बहुत दुःखी है। अतः उसके हितके लिये गया-श्राद्ध करा देना चाहिये। ७३ कन्याएँ प्रतिदिन सुबह-शाम सात-सात बार सीता माता और कुन्ती माता नामोंका उच्चारण करें तो वे पतिव्रता हो ती हैं । ७४ विवाहसे पहले लड़के-लड़कीका मि व्यभिचार है। इसे मैं बड़ा पाप मानता हूँ । ७५ माताएँ-बहनें अशुद्ध अवस्थामें भी रामनाम श्र एक सन्तकी अमूल्य शिक्षा लिख सकती हैं पर पाठ बिना पुस्तकके व चाहिये। यदि आवश्यक हो तो उन दिनोंके लिये अलग पुस्तक रखनी चाहिये। अशुद्ध अवस्थामें हनुमान्चालीसाका स्वयं पाठ न करके पतिसे पाठ कराना चाहिये। ७६ अशुद्ध अवस्थामें माताएँ तुलसीकी मालासे जप न करके काठकी मालासे जप करें और गंगाजीमें स्नान न करके गंगाजल मंँगाकर स्नानघरमें स्नान करें। तुलसीकी कण्ठीतो हर समय गलेमें रखनी चाहिये। ७७ गर्भपात महापाप है। इससे बढ़कर कोई पाप नहीं है। गर्भपात करनेवालेकी अगले जन्ममें कोई सन्तान नहीं हो ती। ७८ स्त्रियोंको शिवलिंग शालग्राम और हनुमान्‌जीका स्पर्श कदापि नहीं करना चाहिये। उनकी पूजा भी नहीं करनी चाहिये। वे शिवलिंगकी रहे एक सन्तकी अमूल्य शिक्षा पूजा न करके शिवमूर्तिकी पूजा कर सकती हैं। हाँ ँ प्रेमभाव मुख्य होता है वहाँ विधि-निषे ण हो जाता है। ७६ स्त्रियोंको रुद्राक्षकी माला धारण नहीं करनी हिये। वे तुलसीकी माला धारण करें। ८० भगवान्‌की जय बोलने अथवा किसी बातक पमर्थन करनेके समय केवल पुरुषोंको ही अपने थ ऊँचे करने चाहिये स्त्रियोंको नहीं। ८१ स्त्रीको गायत्री-जप और जनेऊ -धारणए करनेका अधिकार नहीं है। जनेऊ के बिना ब्राह्मण भी गायत्री-जप नहीं कर सकता। शरीर मल-मूः पैदा करनेकी मशीन है। उसकी महत्ताको लेक स्त्रियोंको गायत्री-जपका अधिकार देते हैं तो य अधिकार नहीं प्रत्युत धिक्कार है यह कल्याण रास्ता नहीं है प्रत्युत केवल अभिमान बढ़ानेके लिये है। कल्याण चाहनेवाली स्त्री गायत्री-जप नहीं २४

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.