बाकमालों के दर्शन : प्रेमचंद की उर्दू कृति – निशा अग्रवाल | Baakmalon Ke Darshan : Premchand Ki Urdu Kriti – Nisha Agrawal

बाकमालों के दर्शन : प्रेमचंद की उर्दू कृति – निशा अग्रवाल | Baakmalon Ke Darshan : Premchand Ki Urdu Kriti – Nisha Agrawal

बाकमालों के दर्शन : प्रेमचंद की उर्दू कृति – निशा अग्रवाल | Baakmalon Ke Darshan : Premchand Ki Urdu Kriti – Nisha Agrawal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : बाकमालों के दर्शन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Munshi Premchand, nisha agrawal | Munshi Premchand, nisha agrawal की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : , | इस पुस्तक का कुल साइज 6.48 MB है | पुस्तक में कुल 137 पृष्ठ हैं |नीचे बाकमालों के दर्शन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | बाकमालों के दर्शन पुस्तक की श्रेणियां हैं : Uncategorized, Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Baakmalon Ke Darshan | This Book is written by Munshi Premchand, nisha agrawal | To Read and Download More Books written by Munshi Premchand, nisha agrawal in Hindi, Please Click : , | The size of this book is 6.48 MB | This Book has 137 Pages | The Download link of the book "Baakmalon Ke Darshan" is given above, you can downlaod Baakmalon Ke Darshan from the above link for free | Baakmalon Ke Darshan is posted under following categories Uncategorized, Stories, Novels & Plays |

पुस्तक के लेखक : ,
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 6.48 MB
कुल पृष्ठ : 137

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

मंतब्य प्रेमचन्द उन विरल लेखकों में हैं जिन्होंने रचना-भापषा के रूप में उर्दू-हिन्दी को सम्मान दिया। जब उर्दू लिखी तो उसकी शेली और मृहावरे में जब हिन्दी लिखी तो उसके स्त्रभाव और अप्रस्तुत विधान में। दोनों का बालमेल नहीं किया। उनके युग में समझौता-भाषा हिन्दुस्तानी की चर्चा जायें पर श्री पर उनका रचनाकार समझता था कि उद तो स्थय पुख्ता (सिली-अुली जुबान) है। अब फिर इस रेखा से और नया रेख्ता जो बनेगा उसमें भाषिक सार-तल्त्र समाप्त हो जाएगा। इसीलिए हिन्दी उर्दू दोनों को वे स्वतंत्र रूप में रचना-भाषा स्तरीकार करते है। यहीं कारण है कि उनकी उर्दू लेखन हिन्दी में या कि हिन्दी लेखन उर्दू में महज़ लिप्यंतरण से संभव नहीं होता जैसा कि हिन्दुस्तानी के लिए हो जानां चाहिए। वहाँ पूरी अनुवाद-प्रक्रिया अपेक्षित होती है। यों प्रेमचन्द की व्यावहारिक सहासुभूतति हिन्दुस्तानी में थी पर उसकी राजनीति में वे भहीं पडे जो उनके जंसे लेखक के लिए सर्वथा याग्स था। प्रस्तुत जीवनी सग्रह जिसके चरित नायकों का चयन राष्ट्रीय जागरण के संदर्भ में जीवन के थिलिध क्षेत्रों से किया यया हैं प्रेमचम्द की मूल उर्दू रचना है जो लम्बे समय से अप्राप्य है। डॉ० निशा अग्रवाल ने बडे परिश्रम और वैसी ही सूझ-बूझ के साथ उसका हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत किया हैं जहाँ प्रेमचन्द की प्रकृति के अनुकूल दोनों भाषा- रूपों को बराबर सम्माम मिलता हैं। रूपान्तरकार की सफलता का यही रहस्य है। रामस्वरूप चतुर्वेदी

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *