भवरोग की रामबाण दवा | Bhavrog Ki Ramban Dawa

भवरोग की रामबाण दवा : गीता प्रेस | Bhavrog Ki Ramban Dawa : Geeta Press

भवरोग की रामबाण दवा : गीता प्रेस | Bhavrog Ki Ramban Dawa : Geeta Press के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : भवरोग की रामबाण दवा है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Geeta Press | Geeta Press की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 8.6 MB है | पुस्तक में कुल 171 पृष्ठ हैं |नीचे भवरोग की रामबाण दवा का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | भवरोग की रामबाण दवा पुस्तक की श्रेणियां हैं : gita-press, health, inspirational

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पुस्तक का साइज : 8.6 MB
कुल पृष्ठ : 171

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परन्तु भगवत्कृपासे प्राप्त हुए सत्सङ्ग और सद्ग्रन्थोंके अध्ययन एवं भगवद्भजनके प्रतापसे ज्यों-ज्यों संकुचित क्षुद्र स्वार्थका त्याग होता है और 'स्वकी सीमा आगे बढ़ती है, त्यों-ही-त्य उस त्यागीके खार्वमें पवित्रता बढ़ती जाती है । इस 'ख' की सीमाकी वृद्धिके कारण ही मनुष्य स्वय कष्ट सहकर परिवारका पालन करता है, परिवारकी परवा न कर समाजकी सेवामें लग जाता है, समाजके चार्यको क्रमशः जाति, देश और विश्वकै स्वार्थमें विलीन कर विश्वसेवाको ही अपनी सेवा, विश्वसुखको ही अपना सुख, विश्वात्माको ही अपना आत्मा मानने लगता है। इस दृष्टिले होनेवाला देशात्मबोध ही सची देशभक्ति है, और विश्वात्मबोधमें ही सच्चा विश्वबन्धुत्व है। क्योंकि उस अवस्था देशका स्त्रार्थ ही अपना स्वार्थ और विश्वका प्रयोजन ही अपना प्रयोजन बन जाता है। जबतक क्षुद्र स्वार्थकी सीमामें मनुष्य विचरण करता है, तबतक वह देश और विश्वकी सेवाका नाम लेता हुआ भी यथार्थ देशसेवा या विश्वसेवा नहीं कर सकता । जहाँ अपने क्षुद्र स्वार्थके साथ देशके या विणके स्वार्थ विरोध उपस्थित होता है, वहीं दद्द अपने क्षुद्र स्वार्थके लिये देश याँ विश्वके खार्यकी परवा नहीं करता । वह देश या विश्वके स्वार्थकी वेदीपर अपने स्वार्थकी बलि नहीं चढ़ा सकता । देश और विश्वकी सेवाके लिये देहात्मबोधसे कई स्तर ऊपर उठकर देशात्मबोध और विश्वात्मवोधकी विस्तृत भूमिपर पहुँचना पड़ता है ! इस भूमिपर पहुँचे बिना ही जो देशभक्ति या विश्वबन्धुत्यकी बातें या

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