केलि कुञ्ज की लीला | Keli Kunj Ki Leela

केलि कुञ्ज की लीला : श्री राधा बाबा जी | Keli Kunj Ki Leela : Shri Radha-Baba Ji

केलि कुञ्ज की लीला : श्री राधा बाबा जी | Keli Kunj Ki Leela : Shri Radha-Baba Ji के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : केलि कुञ्ज की लीला है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Radha-Baba Ji | Shri Radha-Baba Ji की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 37.9 MB है | पुस्तक में कुल 370 पृष्ठ हैं |नीचे केलि कुञ्ज की लीला का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | केलि कुञ्ज की लीला पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Keli Kunj Ki Leela | This Book is written by Shri Radha-Baba Ji | To Read and Download More Books written by Shri Radha-Baba Ji in Hindi, Please Click : | The size of this book is 37.9 MB | This Book has 370 Pages | The Download link of the book "Keli Kunj Ki Leela" is given above, you can downlaod Keli Kunj Ki Leela from the above link for free | Keli Kunj Ki Leela is posted under following categories dharm, hindu |


पुस्तक के लेखक :
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पुस्तक का साइज : 37.9 MB
कुल पृष्ठ : 370

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पृन्दाकी बात सुनकर सखियन पर्व श्यामसुन्दर, सभी आश्चर्वमें भरे हुए पूग्नाके पीछे-पीछे चल पढ़ते हैं। चलकर पूर्वी निरुवामें जा पहुंचते हैं। निमें अतिशय भ% हरी-हरी पत्तियका बेनके आकारका
के आसन है, उसपर वृन्दावी प्रिया-प्रियतमको उत्तरकी और मुख करके बैठ जाने का इशारा करती हैं। प्रिया-प्रियतम उसी प्रकार भासनफ्र बैठ जाते हैं । कृद रागिन आसनको पनटे डी रहती हैं, कुछ ठ जा हैं। निकुञ्ज समियों सुधं दृसियोंसे ठसाठस भर जाता है; पर पूर्ण नीरवता यी हुई है। बृन्दा फिर बहुत धीरे से कहती हैं-सभी उस वृकी ओर देखो।
लताओं के दिमें से एक धृक्षकी ओर वृन्दा अंगुलीसे इशारा करती हैं। यी उस तरफ देखने लग जाते हैं। निकुञ्जसे आठ हाथ उत्तर ८५ बड़ा ही सुन्दर बृक्ष है। बुभ्र झाऊ-वृश्के समान है, पर की अपेक्षा अत्यधिक हरा-भरा है । पत्तियों तो झाऊ-वृक्षकी-सी हैं, पर इतनी अधिक
री-भरी एब इतनी धनी है कि बस, कुछ कहते नहीं बना । मोटी-मोटो द्वाळ हैं, पर में कहीं भी कु पन नहीं है। हाछका रंग भी बड़ा

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