परमार्थ सूत्र संग्रह | Parmarth Sutra Sangrah

परमार्थ सूत्र संग्रह : श्री जयदयाल गोयनका | Parmarth Sutra Sangrah : Shri Jaidayal Goenka

परमार्थ सूत्र संग्रह : श्री जयदयाल गोयनका | Parmarth Sutra Sangrah : Shri Jaidayal Goenka के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : परमार्थ सूत्र संग्रह है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shri Jaidayal Goenka | Shri Jaidayal Goenka की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 48.9 MB है | पुस्तक में कुल 161 पृष्ठ हैं |नीचे परमार्थ सूत्र संग्रह का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | परमार्थ सूत्र संग्रह पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Parmarth Sutra Sangrah | This Book is written by Shri Jaidayal Goenka | To Read and Download More Books written by Shri Jaidayal Goenka in Hindi, Please Click : | The size of this book is 48.9 MB | This Book has 161 Pages | The Download link of the book "Parmarth Sutra Sangrah" is given above, you can downlaod Parmarth Sutra Sangrah from the above link for free | Parmarth Sutra Sangrah is posted under following categories dharm, hindu |


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पुस्तक का साइज : 48.9 MB
कुल पृष्ठ : 161

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५४ जनाकं कहे हुए वोंमें विश्वान कर उनके अनुर स्वार्धके गर्वक शास्त्रवित का आचरण करने के आसक्तिका =क और कर्मयोग । । १।। । शा है। इस प्रकार करते हुए उथ असक्तिका नाश और कार्ययोगके कवक ज्ञान हो जाता है तब कर्मयोगका सन्पादन कठिन हो प्रतीत होता। | ५१ कायोग साधका आप्तम् तो मानके आने गुर भो
अन्त:करणको मत में भी हो सकता है और उसके द्वार पवित्र हुई बुद्धिगे भागमापासे स्वाभाविक ही स्थित होकर और भगद्धका
य होकर भाषाको प्र को सकती है। इसकी ज्ञानयोगही अपेक्षा सुगमता और पिता हैं। | ५३-चपार्थ कल्याण चाहनेवाले मनुमको माई। न लोकहित्के शिते ४ में करने चाहिये।

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