दक्षिण भारत का वृहत इतिहास हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas hindi book in pdf

दक्षिण भारत का वृहत इतिहास हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas hindi book in pdf

दक्षिण भारत का वृहत इतिहास हिंदी पुस्तक पीडीऍफ़ में | Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas hindi book in pdf के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : दक्षिण भारत का वृहत इतिहास है | इस पुस्तक के लेखक हैं : H N Dubey | H N Dubey की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 79.69 MB है | पुस्तक में कुल 410 पृष्ठ हैं |नीचे दक्षिण भारत का वृहत इतिहास का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दक्षिण भारत का वृहत इतिहास पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india, Uncategorized

Name of the Book is : Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas | This Book is written by H N Dubey | To Read and Download More Books written by H N Dubey in Hindi, Please Click : | The size of this book is 79.69 MB | This Book has 410 Pages | The Download link of the book "Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas" is given above, you can downlaod Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas from the above link for free | Dakshin Bharat Ka Vrahat Itihas is posted under following categories history, india, Uncategorized |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : , ,
पुस्तक का साइज : 79.69 MB
कुल पृष्ठ : 410

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

आमुख शलाध्यः स एवं गुणवान्‌ रागदेषवहिष्कृता । भूतार्थकथने. यस्य स्थेयस्येव सरस्वती । ! प्राचीन वृत्तान्तों के निरूपण के सन्दर्भ में वस्तुतः वहीं (इतिहासकार) श्लाध्य एवं निष्पक्ष माना जा सकता है जिसकी दृष्टि न्यायाधीश की भाँति राग एवं दवेष से विवर्जित है (राजतरंगिणी 1 7) । एतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दक्षिणापथ भारतवर्ष के एक अभिन्र महत्त्पपूर्ण अंग के रूप में भारतीय मनीषा द्वारा सदा से ही समादूत है। महाभारत में दक्षिणापथ की ओर जाने वाले अनेक मार्गों की स्थिति का उल्लेख करते हुए इस तथ्य की प्राचीनता को स्वीकारा गया है (एते गच्छन्ति वहवः पन्थानों दक्षिपथमू आरण्यक पर्व 58. 2 हमारी मातृभूमि के भौगोलिक अड्डों को दृढ़ सम्पृक्तता की ओर संकेत करते हुए पुराणों में कहा हा गया है कि समुद्र के उत्तर एवं हिमालय के दक्षिण जो विशाल पूखण्ड है वहीं भारतवर्ष है तथा इसमें रहने वाली जनता भारती-प्रजा के रूप में विश्ुत हैं - उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमवददलषिणं च यत्‌ वर्ष यदू भारत नाम यत्र य॑ भारती प्रजा । 1 कर (वायु पुराण 45 75] प्राचीन भुवनकोश-सूचियों में उल्लिखित दक्षिणापथ के अनेक जनपद जातीय-भूमियाँ नदियाँ पर्वत्त कलाकेन्द्र तीर्थ एवं नगर आदि हमारी मातृभूमि के चैतन्य-केन्द्र के साथ रागवद्ध थे। दक्षिणापथ-महात्य की व्याख्या करते हुए तत्वभेदि वैटुप्य-मण्डित राजशेखर ने काव्यमीमांसा में लिखा है कि महि मी के आगे का भृ-प्रदेश दक्षिणापथ है जिसमें महाराष्ट्र माहिपक अश्मक विदर्भ कुन्तल क्रथकैशिक शूर्पारक केरल कावर मुर्त वानवासक चोल दण्डक पाण्ड्य पल्लव गांड नासिक्य कॉकण कोल्लगिरि एवं वल्लर आदि जनपद । विन्ध्य का दक्षिणापाद महेन्द्र मलय मेकल पाल मज्जर सह्य एवं श्रीपर्वत आदि गिरिश्रृंखलाएँ इसमे ताप्ती पयोष्णी गोदावरी कावेरी भीमरथा वेणा कृप्णवेश वज्जुरा तुंगभद्रा ताम्रपर्णी उत्पलावती एवं रावणगंगा आदि सरिताजों द्वारा यह भूरिसिंचित है मलयोपत्यका में उत्पन्न होने वाले चन्दन इलायची कालीमिर्च. कपूर तथा दक्षिण पयोधि में . पाई जाने वाली मणियाँ एवं मोती आदि दक्षिणापथ में मुलभ विविध पदार्थ एवं निधियाँ जगत्‌विख्यात हैं (सप्तदशो 5ध्याय देशविभाग ) । इन शब्दों में इस भू-भाग के गौरव के समीक्षक एवं कन्याकुमारी के छोर तक पर्यटन के श्रेय से विभूपित राज शेखर यहाँ अभिव्यज्जित करते हैं कि यह भूखण्ड (दक्षिणापथ) भारतीय भूगोल एवं संरकूति की एक महत्वपूर्ण इकाई थी! युग-युगीन सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एवं परम्परा में पल्लबित दक्षिण भारत के गौरवमय इतिहास का सम्यक्‌ अनुशीलन एवं अपेक्षित ज्ञान एक ऑिवार्य स्थिति है जिसकी ओर

Share this page:

One comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *