दम्पति जीवन : श्रीमती सुशीला देवी | Dampati Jeevan : Shrimti susheela Devi

दम्पति जीवन : श्रीमती सुशीला देवी | Dampati Jeevan : Shrimti susheela Devi

दम्पति जीवन : श्रीमती सुशीला देवी | Dampati Jeevan : Shrimti susheela Devi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : दम्पति जीवन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shrimti susheela Devi | Shrimti susheela Devi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 9.1MB है | पुस्तक में कुल 355 पृष्ठ हैं |नीचे दम्पति जीवन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | दम्पति जीवन पुस्तक की श्रेणियां हैं : hindu, vayask

Name of the Book is : Dampati Jeevan | This Book is written by Shrimti susheela Devi | To Read and Download More Books written by Shrimti susheela Devi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 9.1MB | This Book has 355 Pages | The Download link of the book "Dampati Jeevan" is given above, you can downlaod Dampati Jeevan from the above link for free | Dampati Jeevan is posted under following categories hindu, vayask |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 9.1MB
कुल पृष्ठ : 355

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तीसरा परिच्छेद
२५ लिए-इसलिए कि हम में तेज पैदा हो, शौर्य, बढ़े, ब्रह्मचर्यं धारण करना अत्यन्त आवश्यक है। बिना इसके हमारे जीवन में संयम न आएगा, हम सदाचारी न बन सकेंगे, स्त्री-मात्र के दर्शन से हमारा पतन हो जाया करेगा।
लेकिन केवल मन पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश-मात्र से काम न चलेगा । जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है, मन
की संस्कृति पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है; पर इसके । साथ ही साथ और कई बातों पर ध्यान देना होगा । * भोजन, रहन-सहन, सङ्गति तथा वातावरण का मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। संस्कृत मन भी खराब सङ्गति में पड़ कर नीचे गिर जाता है। भोजन की गड़बड़ी से भी आदमी के मन में गहरा परिवर्तन होते देखा गया है। इन बातों पर ध्यान देते हुए ब्रह्मचारी के लिए उत्तम भोजन, सदाचारी जीवन एवं सत्सङ्गति की व्यवस्था की गई है। । उन्हें सादा सात्विक भोजन ही करना चाहिए। वह भी इतनी मात्रा में, जिसे वे सरलता से पचा सकें और उनका कोठा भारी न होने पाए । पेट का भारी रहनाविशेष कर रात के समय-स्वप्न-दोष का प्रधान कारण है। भोजन को ठीक-ठीक पचाने के लिए व्यायाम भी अत्यन्त आवश्यक है।
भोजन के बाद विचारों की पवित्रता के लिए सादा रहनसह्न तथा उत्तम सङ्गति का स्थान आता है। यदि किसी

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