गुप्त धन : मुंशी प्रेमचंद | Gupt Dhan : Munshi Premchand के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : गुप्त धन है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Munshi Premchand | Munshi Premchand की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Munshi Premchand | इस पुस्तक का कुल साइज 20.6 MB है | पुस्तक में कुल 277 पृष्ठ हैं |नीचे गुप्त धन का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | गुप्त धन पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays
Name of the Book is : Gupt Dhan | This Book is written by Munshi Premchand | To Read and Download More Books written by Munshi Premchand in Hindi, Please Click : Munshi Premchand | The size of this book is 20.6 MB | This Book has 277 Pages | The Download link of the book "Gupt Dhan" is given above, you can downlaod Gupt Dhan from the above link for free | Gupt Dhan is posted under following categories Stories, Novels & Plays |
यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |
होली की छुट्टी
बर्नाक्युलर फ़ाइनल पास करने के बाद मुझे एक प्राइमरी स्कूल में जगह मिली, जो मेरे घर से ग्यारह भीड़ पर था। इनारे हेडमास्टर साहब को दियों में भी लनकों को पढ़ाने की सुनक थीं। रात को लड़के माना जाकर स्कूल में आ जाते और हेडमास्टर साहब चारपाई पर लेटकर अपने खड़िों से उन्हें पड़ाआ करते। जब लड़कों में धौल-चप्पा शुरू हो जाता और शोर-गुल मचने लगता तव यकायक वह खरगोश की नींद से चौक पड़ते और लड़कों को दो-चार तमाचे लगाकर फिर अपने सपनो के मजे लेने लगते । ग्यार-बारह बजे रात तक यही ड्रामा होता
तो, यहाँ तक कि लड़के नींद से बेक़रार होकर वहीं टाट पर सो जाते। अप्रैल में सालाना इम्तहान होनेवाला था, इसलिए जनबरी ही से हाय-तौबा मची हुई थी। नाइट स्कूलों पर इतनी रियायत थी कि रात की क्लास में उन्हें न तलब किया जाता था, मगर छुट्टियां बिलकुल न मिलती थीं। सोमवती अमावस आयी और निकल गयी, बसन्त आया और चला गया, शिवरात्रि आयी और गुजर गयी, और इतवारों को तो जिक्र ही क्या है। एक दिन के लिए कौन इतना बड़ा सफर कता, इसलिए कई महीनों से मुझे घर जाने का मौक़ा न मिला था। मगर अबकी मन पक्का इरादा कर लिया था कि होली पर जरूर घर आऊँगा, पाहे नौकरी से हाथ ही क्यों न घोने पड़े। मैने एक हफ्ते पहले ही से हेडमास्टर साहब को अल्टीमेटम दे दिया कि २० मार्च को होली की छुट्टी शुरू होगी और अन्दा १९ की शाम को रुखसत हो जायगा। हेडमास्टर साहब ने मुझे समझाया कि अभी लडके हो, तुम्हें क्या मालूम नौकरी कितनी मुश्किलों से मिलती है और कितनी मुश्किलों से निभती है, नौकरी पाना उतना मुश्किल नहीं जितना उसको निभाना। अप्रैल में इम्तहान होनेवाला है, तीन-चार दिन स्कूल बन्द रहा तो बताओ कितने लड़के पास होंगे? साल भर की सारी मेहनत पर पानी फिर जायगा कि नहीं? मेरा कहना मानो, इस छुट्टी में न जाओ, इम्तहान के बाद जो छुट्टी पड़े उसमें चले जाना। ईस्टर की चार दिन की छुट्टी होगी, मैं एक दिन के लिए भी न रोहूंगा।
मैं अपने मोर्चे पर कायम रहा, समझाने-बुझाने, डराने-धमकाने और जवाब
very good website