जैन जगत | Jain Jagat के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : जैन जगत है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Darbari Lal Nyayateerthan | Darbari Lal Nyayateerthan की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Darbari Lal Nyayateerthan | इस पुस्तक का कुल साइज 40 MB है | पुस्तक में कुल 632 पृष्ठ हैं |नीचे जैन जगत का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | जैन जगत पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm
Name of the Book is : Jain Jagat | This Book is written by Darbari Lal Nyayateerthan | To Read and Download More Books written by Darbari Lal Nyayateerthan in Hindi, Please Click : Darbari Lal Nyayateerthan | The size of this book is 40 MB | This Book has 632 Pages | The Download link of the book "Jain Jagat" is given above, you can downlaod Jain Jagat from the above link for free | Jain Jagat is posted under following categories dharm |
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प्रारम्भ में आजीविका की सुविधा के लिये , चार जातियां बनाई गई थीं। पीछे से वे वंशपरंपरा के लिये स्थिर होग। वाद में वेटीव्यव हार भी उन्हीं में मीमिन हुआ और जिनने इन बेटीयवहार के नियमों का भव किया उनकी जुदी जुड़ी जातियाँ बन गई। इपक याद नो खानपान भी बन्धन मज़बूत होगये तथा दिदी दल की तरह हज़ारों की संख्यामें जातियाँ निन्दलाई देने लगीं। अपनी ही जाति में रोटी बेटीव्यवहार मीमित हो गया। दूसरी जातियों में भोजन करना अपगध माना जाने लगा। फलतः अपनी जाति को रवाच मानने की भावना हद होती गई। यहां तक कि कौनसी जाति ऊंच है और कौनसी नीच, इसकी जांच इस बात पर होने लगी कि कौन किनक हाथका भोजन कर सकता है। हरग जाते इस यानकी कोशिश करने लगी कि हमारे साथ कोई दूसरी जाति का आदमी भोजन न करले । इसके दो विचित्र नमने देखिये!