कैराना - कल और आज | Kairana - Kal Aur Aaj

कैराना – कल और आज : मोहम्मद उमर कैरानवी | Kairana – Kal Aur Aaj : Mohammad Umar Kairanvi

कैराना – कल और आज : मोहम्मद उमर कैरानवी | Kairana – Kal Aur Aaj : Mohammad Umar Kairanvi के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : कैराना - कल और आज है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Umar Kairanvi | Umar Kairanvi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 700 KB है | पुस्तक में कुल 33 पृष्ठ हैं |नीचे कैराना - कल और आज का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | कैराना - कल और आज पुस्तक की श्रेणियां हैं : history, india, Knowledge

Name of the Book is : Kairana - Kal Aur Aaj | This Book is written by Umar Kairanvi | To Read and Download More Books written by Umar Kairanvi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 700 KB | This Book has 33 Pages | The Download link of the book "Kairana - Kal Aur Aaj" is given above, you can downlaod Kairana - Kal Aur Aaj from the above link for free | Kairana - Kal Aur Aaj is posted under following categories history, india, Knowledge |


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पुस्तक का साइज : 700 KB
कुल पृष्ठ : 33

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कैराना जो कभी कर्ण
की राजधानी थी
मुजफ्फरनगर से करीब 50 कि. मी. पश्चिम में हरियाणा सीमा से सटा यमुना नदी के पास करीब 90,000 की आबादी वाला यह कस्बा कैराना प्राचीन काल में कपुरी के नाम से विख्यात था जो बाद में विगइकर किराना नाम से जाना गया और फिर किराना से कैराना में परिवर्तित हो गया। सर्व
| कैराना से दक्षिण में ही बसे तीतरवाड़ा गाँव में एक तीतर बों पठान रहता था जिसके जुल्म से लोग काफी तंग आ चुके थे। बताते हैं कि इस क्षेत्र में उस समय होने वाली शादी के बाद दुल्हे द्वारा यहां से गुजरने वाली दुल्हन की डोली उक्त तीतर खों एक रात अपने पास रखता था। इसी प्रकार उस समय जब तीतर खाँ ने अपनी आदत के अनुसार यहाँ से गुजरने वाली एक बारात को रोक कर नववधु को जबरन दुल्हे से ले लिया तो दुल्हे पक्ष के लोग शहर पंजीत में रहने वाले उस समय के अति प्रभावशाली व्यक्ति राणाहु जो कुछ वर्षों पूर्व ग्राम जूण्डला (हरियाणा) से आकर यहीं बसा था के पास पहुँचे और तीतर बों के जुल्म की कहानी उनको सुनाई। आज जहाँ पर तीतरवाडा बसा है यह पंजीत से मात्र 3 किलो मीटर की दूरी पर है तथा कैराना से 5 किलो मीटर दक्षिण में है। बताते हैं कि राणाहुर्रा ने फरियाद सुनकर तीतर स्त्रों से युद्ध करने की ठान ली और वह तीतर खाँ के पास तीतरवाडा पहुँचा और वधु को मुक्त करने का आग्रह किया जिस पर तीतर खों ने नव वधु को वापिस करने से मना कर दिया इस पर राणा हुर्रा ने अपने 20 पुत्रों व अन्य साथियों सहित तीतर खाँ पर आक्रमण कर दिया। इस युग में तीतर बों को मौत के घाट उतार दिया गया और न ] को मुक्त करा लिया गया। इस गुन में राणा हुर्रा के 17 पुत्र शहीद हो गये। पुत्र कलसा, दीपचन्द थ दोपाल थवे इनमें से बाद में कलसा से कैराना क्षेत्र के गूजरों की चौरासी कलस्यान नाम से बसी जो आज भी कलमान खाप के नाम से जानी जाती है। दूसरे पुत्र दीपचन्द ने देवबंद का शासन किया जबकि तीसरे पुत्र दोबाल ने रामपुर मनिहारान पर शासन किया और यहीं पर खूबद्धो की चौरासी वसायी। बताते है कि
मुक्त करागी गयी नव वध राणा हु की पत्नी अनी, जसको 2 पुत्र सलया व सैगला हुये इन दोनों पुत्रों में से सलखा ने सिसौली पर शासन किया और बलियान खाप बसायी और सैगला ने मेरठ जनपद के चौरासी धाप सैगलान बसायी। जानकारी के अनुसार आज 4 चौरासी खाप हैं। कैराना क्षेत्र में कलसयान नाम से, रामपुर मनिहारान में खूबों की चौरासी तथा सिसौली क्षेत्र में बालियान खाप तथा मेरठ में सैगलान खाप के नाम से विख्यात है। यह शहर पंजीत से राष्ा हु की चशावली हैं कुल मिलाकर शहर पंजीत जो आज तक पिछले गाँव के रुप में विद्यमान है, ने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण इतिहास की है। प्राचीन इतिहास में जोड़ी। जिसका रा उल्लेख करना आवश्यक था इस गांव में वर्तमान समय में सैनी समाज के लोगों सहित मुस्लिम गूजर रहते हैं।
| कैराना पर मुगल बादशाहों की नजरे इनायत रही हैं यही कारण है कि उन्होंने यहां पर अनेक महत्वपूर्ण निर्माण कराये जिनके अवशेष आज भी जीर्ण अक्स्था में खण्डहर बने मुगलकाल की गवाही दे रहे हैं। कैराना के पूर्व में कांधला. पश्चिम में पानीपत, उत्तर में झिझाना व शामली तथा दक्षिण में प्राचीन शहर पंजीठ व तीरथाहा रित हैं। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि पांडवों ने जो पाँच गाँव दुर्योधन से माँगे थे वह गाँव पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपरा, वरुप (बरनावा) यानि पत नाम से जाने जाते हैं। महाभारत काल में कराना से होकर ही यमुना नदी बहती थी। और यहीं पर राजा कर्ण का राज्य था जिन्होने अपने समय में कई महत्वपूर्ण किले बनवाये और इसके चारो ओर पांडवों का रहन सहन व आवागमन था। कहा जाता है कि दानवीर कर्ण यमुना नदी के किनारे प्रातःकाल सूर्य देवता की पूजा किया करते थे। इसी स्थान पर राजा ६६ को राजी कर्ण ने अपने काम कुण्डल दान में दे दिये थे। तब से ही राजा कर्ण दानवीर के नाम से विख्यात हुए।
महाभारत युद्ध स्थल होने के कारण तथा इसके कैराना के समीप होने के कारण पाण्डव व कौरवों ने कुरुक्षेत्र के आसपास चारों और युज शिविर लगाये थे इन शिविरों में श्याम के नाम से जहाँ श्री कृष्ण रहते थे शामली करवा हैं तथा कैराना में महाबली कर्ण, नकुड़ में नकुल, तथा थानाभवन । गी। आदि के शिविर थे इसी प्रकार ॥ ४॥र से नाम प्रारम्भ होने वाले कस्बों में करनाल, कैराना, कुरुक्षेत्र, कांधला आदि में कुरुवंश के युवराज दुर्योधन ने अंगदेश बनाकर कर्ण को सौंपा था और राजा कर्ण ने यमुना किनारे इस स्थान को केन्द्र बिन्दु मानकर महत्वपूर्ण निर्माण कराये लेकिन बाद में मुगल कालीन समय में यह महाभारत कालीन स्मृतियां लुप्त कर दी गई।

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