पंचीकरणम (प्रणवार्थ) | Panchikranam (Pranvarth)

पंचीकरणम (प्रणवार्थ) : शंकराचार्य | Panchikranam (Pranvarth) : Shankaracharya

पंचीकरणम (प्रणवार्थ) : शंकराचार्य | Panchikranam (Pranvarth) : Shankaracharya के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : पंचीकरणम (प्रणवार्थ) है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shankaracharya | Shankaracharya की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 1.5 MB है | पुस्तक में कुल 22 पृष्ठ हैं |नीचे पंचीकरणम (प्रणवार्थ) का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पंचीकरणम (प्रणवार्थ) पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

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पुस्तक का साइज : 1.5 MB
कुल पृष्ठ : 22

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ॐ तत् सद् ब्रमणे नमः
वैदिक साहित्य के भीतर ओम् शब्द का उड़ा महत्व है यहां शक कि आदरार्थ जैसे माता पिता आदि का नित्य नाम साधारण नहीं लिया जाता उसी भांति इस (ओम्) का भी एक पर्याय (उपनाम) प्रणव रख लिया गया है ( जैसे माता पिता आदि को मां, अम्मा, बप्पा मादि कहते हैं ) वेद मन्त्र व उपनिषद् व दर्शन आदि सभी शास्त्रों में माहात्म्य जप, विचार आदि रूप से इस ( ओम् ) का अधार लिया गया है तो शङ्का यह होती है कि यह केवल शब्द ही शब्द मात्र हैं कि और कुछ ? इसी शक्का को लेकर कहीं कहीं पनि षदों में इसके अर्थ का भी विचार किया है यहां तक कि मांडूक्योपनिपद् पूरा इसी का अर्थ ही हैं। और पातञ्जल दृशेनमें ईश्वरका वाचक ( नाम ) कह कर इसका जप इसके अर्थ भावना को ही कहा है ( तापः तदर्थभावनम् ) अर्थात् अर्थ भावना करना ही इसका प्रधान जप है इसके विचार से समष्टि ( पर्यक) व व्यष्टि ( प्रत्यक्) चेतन (ईश्वर जीवात्मा ) दो रूप से जो कहा जाता है उसकी एकता का ज्ञान हो जाता है ( ततः प्रत्यक् चेतनाधिगमः पन्तं ) इसलिये अद्वैत सिद्धान्तवादी श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य जगद्गुरु श्री शङ्कराचार्य जी ने पञ्जीकरण विचार नाम की इस पुस्तिका में परम हंसों की समाधि विधि के नाम से इसी ओम् का अर्थ बहुत अच्छे इङ्ग से किया है। ओम् के प्रायः ॐ ओम् यह दो रूप लिखने में आते हैं। अर्थ विचार में ओम् के मात्राक्षर पृथकू कर ( अ उ म्) समझाया गया है इससे सगुण ब्रह्म व शब्द ब्रह्म का रूप इसे कइते
है। और अधे समझ जाने पर इसका पूर्ण अनुभव करके जो इसका ' संस्कारात्मक बुद्धि का बन जाना व निर्गुण ब्रह्म व परप्रमका रूप है उसे ॐ कहते हैं। इसी (ॐ) का रूपकालंकार से गणेशके रूप की व अपभ्रंशरूप से स्वस्तिक चिह्न की भी कवियों ने कल्पना की है। सो इस ओम् का संस्कृत भाषा में ही अर्थ था उसको सर्व साधारण जिज्ञासुओं के समझने के लिये इसकी हिन्दी कर दी गई है।

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