मानसागरी पद्धति : श्री लज्जाशंकर शर्मा | Maansaagari Paddhati : Shri Lajjashankar Sharma के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : मानसागरी पद्धति है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Lajjashankar Sharma | Lajjashankar Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Lajjashankar Sharma | इस पुस्तक का कुल साइज 28 MB है | पुस्तक में कुल 568 पृष्ठ हैं |नीचे मानसागरी पद्धति का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | मानसागरी पद्धति पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Maansaagari Paddhati | This Book is written by Lajjashankar Sharma | To Read and Download More Books written by Lajjashankar Sharma in Hindi, Please Click : Lajjashankar Sharma | The size of this book is 28 MB | This Book has 568 Pages | The Download link of the book "Maansaagari Paddhati" is given above, you can downlaod Maansaagari Paddhati from the above link for free | Maansaagari Paddhati is posted under following categories dharm, hindu |
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अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तत्र केवल । प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्रं चन्द्रा यत्र साक्षिणी ।। १ ।।
पाठक वृन्द ! भारतवर्षकी इस आधुनिक अवनत दशा भी ऋपिकृत भविष्य| इणी के यथार्थताका जनमात्र के हृदय पर अगर सच्चा विश्वास तथा प्रत्यक्षाफल दफ
बं चमत्कार दिखाने वा । कोई शास्त्र है तो ज्योतिष शास्त्र हैं, कोई चाह नास्तिक से ।। परे नास्तिक हो तथा किसी भी धर्म एवं मत व देशका मनुष्य क्यों न हो परन्तु |यक्षफलबोधक ज्योतिषशास्त्र को उसे सच्चा मानना ही पड़ेगा, दूसरे शास्त्री #
एए इसमे किन्तु, यदि, क्या ययू के लिये जगह ही नहीं रहती, और संदिग्ध खातों में । “सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषु प्रमाण मन्तः करणप्रवृत्तयः” के अनुसार कार्य करना हता है लेकिन इसमें प्रत्यक्षे कि प्रमाण" का ऐसा हिसाब लगा हुआ है कि जिसमें न्देह को कही स्थान ही नहीं मिलता खुद प्रत्यक्ष फन्ड ही अन्तः करणके ऊपर ऐसा (सन जमाकर बैठ जाता है, कि जिससे उसके अन्तःकरने संदेह ही नहीं रहता कि अन्तःकरण की प्रवृत्ति को प्रमाण के लये सन्देह की लहरों में गोता लगाने पड़े।
अतः विवश होकर सर्वथा इस शास्त्रके महत्वकी ओर शिर झुकाना ही पड़ता | है, इस शास्त्र में कहे हुए सभी विषय प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर जनता के होते हैं, ऐसा कौन होगा कि जो प्रतिवर्ष यथा समय पर शास्त्र से निर्दिष्ट किये हुए रहण', वृष्टि आदिको न दृष्टिगोचर करता हो अन्यान्य भी ऐसी कई प्रधान ३ बात है 15 जो लोगों के विश्वास को इस शास्त्रकी सत्यता में दृढ करती हैं, अत एवही वह
होतिः शास्त्र' हटे रूम्भवत्यष्टकल्पना न न्याय्या' के अनुसार अकल्पनाशों से |मुक्त होकर दृष्टार्थता से भरा पड़ा है, ज्योतिषामयनं चक्षुः, र बैंन्द्रियाणां मयां
नम् “ तद्वद्वेदाङ्गशास्त्राणां ज्योतिष मूर्धनि स्थितम् इन कारों से निर्विवाद सिद्ध कि यह शास्त्र सर्वशास्त्रोपरि प्रधान है, इसमें अणुमाव भी संदेह नहीं है, अब हमें
तग्रन्थ मान सागरी को लेकर कहा है कि यह मानसागरी ग्रन्थ जन्मपत्री के विषय (५लिये भारतवर्ष में जितना प्रचलित है ऐसा और कोई ग्रन्थ नहीं देखा जाता, इस
के महत्व से छोटे से छोटे बड़े से बड़े सभी ज्योतिषी खूब परिचित है, जैसा कि | ‘मपत्री का विषय इसमें सरलता से स्पष्ट किया है वैसा अन्यत्र नहीं, शशिर राधा