परिमल | Parimal

परिमल | Parimal

परिमल | Parimal के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : परिमल है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Pt. Suryakanta Ji Tripathi ‘Nirala’ | Pt. Suryakanta Ji Tripathi ‘Nirala’ की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 3 MB है | पुस्तक में कुल 272 पृष्ठ हैं |नीचे परिमल का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | परिमल पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry

Name of the Book is : Parimal | This Book is written by Pt. Suryakanta Ji Tripathi ‘Nirala’ | To Read and Download More Books written by Pt. Suryakanta Ji Tripathi ‘Nirala’ in Hindi, Please Click : | The size of this book is 3 MB | This Book has 272 Pages | The Download link of the book " Parimal " is given above, you can downlaod Parimal from the above link for free | Parimal is posted under following categories Poetry |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 3 MB
कुल पृष्ठ : 272

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एक प्रहार को अनुकान्त कविता का रूप परिहा निरिधरी | म 'नयर'न' ने हिन्दी में मदा किया है। इसकी गति कवित्त- इन्द कमी है। इरएइ इन्। घाउ-या वयो का होता है। अन्यानु|म न २६ । मैंने रवीन्द्रनधि को एक कविता के अनुवाद में इनः अनु कान काय का रूप देसा था । 'मेरे पद मुरार' इस र १६ में माट-घर पर रहते हैं। अमित्र कविता इप हर दिन के ग, माशा और ग्र, नो बृई में हुई है। यह इति पत्र है और दिमको नि,'फन्न, दुमका विचार नहीं | हिदा यो । ३८ मला भविप के झोग करेंगे। मुझे कंत्रत हिन्दी में अनु बिता दे कवियों में किसी ने दूर अनुमान किया । इ की मात्रा में मेने हो है, मई , एक से अपने दूसरे दि की पनाने हा मान मि छ। हो, ।। दोनों की मौद्धि हुन। एक दूसरे में अड़ गई है। या न होता, तो में कोई दूसरा इन्द ।

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