प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग | Premghan Sarvaswa Part I

प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग | Premghan Sarvaswa Part I

प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग | Premghan Sarvaswa Part I के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 48.0 MB है | पुस्तक में कुल 685 पृष्ठ हैं |नीचे प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | प्रेमघन सर्वस्व प्रथम भाग पुस्तक की श्रेणियां हैं : Knowledge

Name of the Book is : Premghan Sarvaswa Part I | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : | The size of this book is 48.0 MB | This Book has 685 Pages | The Download link of the book "Premghan Sarvaswa Part I" is given above, you can downlaod Premghan Sarvaswa Part I from the above link for free | Premghan Sarvaswa Part I is posted under following categories Knowledge |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 48.0 MB
कुल पृष्ठ : 685

Search On Amazon यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

भारतेन्दु-मंडल के किसी जीते-जागते अवशेष के प्रति मेरी कितनी उत्कंठा थी, इसका अब तक स्मरण है। मैं नगर से बाहर रहता था। अवस्था थी १२ या १३ वर्ष की। एक दिन बालकों की एक मंडली जोड़ी गई, जो चौधरी साहब के मकान से परिचित थे, वे अगुआ हुए। मील डेढ़ मील का सफर तै हुआ। पत्थर के एक बड़े मकान के सामने हम लोग जा खड़े हुए। नीचे का बारामदा खाली था। ऊपर का बरामदा सघन लताओं के जाल से आवृत था। बीच बीच में खंभे और सुली जगह दिखाई पड़ती थी। उसी ओर देखने के लिए मुझसे कहा गया। कोई दिखाई न पड़ा।

You might also like
Leave A Reply

Your email address will not be published.