साधना : स्वामी महेशानंद गिरी जी हिंदी पुस्तक | Sadhna : Swami Maheshanand Giri Ji Hindi Book

साधना : स्वामी महेशानंद गिरी जी | Sadhna : Swami Maheshanand Giri Ji

साधना : स्वामी महेशानंद गिरी जी | Sadhna : Swami Maheshanand Giri Ji

साधना : स्वामी महेशानंद गिरी जी | Sadhna : Swami Maheshanand Giri Ji के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : साधना है | इस पुस्तक के लेखक हैं : maheshanand giri | maheshanand giri की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 18 MB है | पुस्तक में कुल 100 पृष्ठ हैं |नीचे साधना का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | साधना पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, inspirational

Name of the Book is : Sadhna | This Book is written by maheshanand giri | To Read and Download More Books written by maheshanand giri in Hindi, Please Click : | The size of this book is 18 MB | This Book has 100 Pages | The Download link of the book "Sadhna" is given above, you can downlaod Sadhna from the above link for free | Sadhna is posted under following categories dharm, inspirational |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 18 MB
कुल पृष्ठ : 100

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२: साधना
साधना : ३
और संगीत विद्या-आदि यह सब मैं जानता हूँ।' इतनी विद्यायें जानने पर भी नारद जी को शान्ति नहीं मिली; शान्ति मिले कैसे? किसी राजा को राज्य, वैभव, स्त्री, पुत्र और सम्मानादि सभी प्राप्त हों, परन्तु उसके शरीर में भयंकर पीडा हो तो वह सारा वैभव भी उसे शान्ति प्रदान नहीं कर सकता। इसी प्रकार संसार का बड़े से बड़ा ऐश्वर्य प्राप्त होने पर भी आत्मज्ञान के बिना पूर्ण शान्ति प्राप्त होना सर्वथा असम्भव है। देवर्षि नारद जिन्होंने वेद वेदाङ्ग का सम्यक्रूपेण अध्ययन कर लिया है बिना आत्म-साक्षात्कार किये दुःख एवं संघर्ष के पाश में अपने को बँधा हुआ अनुभव करते हैं फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है ?
*यदा चर्मवदाकाशं वेष्टयिष्यन्ति मानवाः ।
तदा देवमविज्ञाय दुःखस्यान्तो भविष्यति ।। 'बिना भगवान् का साक्षात्कार किये दुःखों से छुटकारा पाना आकाश को चमड़े के समान लपेट लेने की तरह असम्भव है।' यह श्रुति का निर्णय है।
अतः नारद जी कहते हैं।
'सोऽहं भगवो मन्त्रविदेवास्मि नामविच्छ्रतं होव में भगवद्दृशेभ्यरतरति शोकमात्मविदिति सोऽहं भगवः शोचामि तं मा भगवाञ्छोकस्य पारं तारयतु । इति । (छा० उ० ७ ॥१॥३) 'हे भगवन् ! मैं केवल शब्द और उनका अर्थ जानता हूँ, किन्तु आत्मा को नहीं जानता हूँ-जो मनुष्य का वास्तविक स्वरूप है; और मैंने आप सरीखे महानु गुरुओं से सुना है कि केवल आत्म-ज्ञानी ही शोक को पार कर लेता है; इसलिए हे भगवन् ! इस दुःख-सागर को पार करने में मेरी सहायता कीजिये।
इससे यह सिद्ध होता है कि केवल शास्त्रज्ञान से जन्म-मरण चक्ररूप शोक समुद्र को पार नहीं किया जा सकता; इसके लिये तो अनुभव की आवश्यकता है। यदि अध्ययनमात्र से ही कार्य सिद्धि हो जावे तो सद्गुरु की क्या आवश्यकता ? किन्तु सद्गुरु भी
अधिकारी शिष्य को ही ब्रह्म-विद्या (आत्म-ज्ञान) की दीक्षा देता है; इसी कारण भगवान् सनत्कुमार ने उसकी (नारद की) योग्यता का परिचय माँगा। नारद ने सर्वप्रथम बताया कि उन्होंने वेद पढ़े हैं। वेद वह शब्दराशि है जो अनादि काल से चली आई है, जिसमें कुल एक लाख मन्त्र हैं-- अस्सी हजार मन्त्र कर्मकाण्ड के, सोलह हजार मन्त्र उपासनाकाण्ड के, और केवल चार हजार मन्त्र ज्ञानकाण्ड के हैं। संसार में यह नियम है कि जो चीज़ जितनी कम मात्रा में होती है, उतनी ही वह मूल्यवान् होती है और जिस वस्तु का जितना बाहुल्य होता है उतना ही उसका मूल्य कम होता है; जैसे सोने की अपेक्षा कोयले का मूल्य बहुत कम है। ठीक इसी प्रकार कर्मकाण्ड तथा उपासनाकाण्ड की अपेक्षा ज्ञानकाण्ड अधिक मूल्यवान् है। जिसकी योग्यता रखने वाले अधिक होते हैं, उतनी ही अधिक उसकी सामग्री होती है। इसी कारण कर्मकाण्ड का बाहुल्य हैं। धर्म का अधिकार सबको है। बिना कर्मकाण्ड किये चित्त की शुद्धि नहीं हो सकती
‘कर्माणि चित्तशुद्ध्यर्थमेकाग्रचार्थमुपासना।
मोक्षार्थं ब्रह्मविज्ञानमिति वेदान्तनिश्चयः ।। उपासना द्वारा ही अन्य बातों से हटाकर ईश्वर में चित्तवृत्ति लगाना संभव है। इसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिये ब्रह्मज्ञान की नितान्त आवश्यकता है।
| वेद के अन्दर अखण्डता है; उसमें विभाग कल्पित हैं और कल्पना के आधार पर ही उसका निम्नलिखित विभाजन किया गया है
१. कर्मकाण्ड (संहिता भाग) २. उपासनाकाण्ड (ब्राह्मण-आरण्यक भाग), ३. ज्ञानकाण्ड (उपनिषद् भाग)।
किन्तु यह प्रायोवाद से कहते हैं क्योंकि संहिताओं में ज्ञानकाण्ड तथा आरण्यकों में भी कर्म-उपासना की विधियां मिलती हैं। जैसे-जैसे विषय उपस्थित होते हैं उन सबको वहीं कह दिया जाता

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