पद्मपुराण : अज्ञात | Sankshipt Padampuraan : Unknown के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : पद्मपुराण है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Unknown | Unknown की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Unknown | इस पुस्तक का कुल साइज 71.7 MB है | पुस्तक में कुल 1001 पृष्ठ हैं |नीचे पद्मपुराण का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | पद्मपुराण पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Sankshipt Padampuraan | This Book is written by Unknown | To Read and Download More Books written by Unknown in Hindi, Please Click : Unknown | The size of this book is 71.7 MB | This Book has 1001 Pages | The Download link of the book "Sankshipt Padampuraan" is given above, you can downlaod Sankshipt Padampuraan from the above link for free | Sankshipt Padampuraan is posted under following categories dharm, hindu |
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• अर्चयत्व इपीकेनं दोसि पर फ्दम् •
[ संक्षिप्त फ्यपुराण
का काम करने उन्होंने अपनी नम्रता और प्रणाम आदिके द्वारा महर्षियोंको उत्पत्ति कैसे हुई, उससे ब्रह्माजीका आविर्भाव किस सन्तुष्ट किया। वे यज्ञमें भाग लेनेवाले महर्षि भी प्रकार हुआ तथा कमलसे प्रकट हुए ब्रह्माजीने किस सदस्यसहित बहुत प्रसन्न हुए तथा सबने एकत्रित होकर तरह जगत्की सृष्टि की-ये सब बातें इन्हें बताइये। सूतजीका यथायोग्य आदर-सत्कार किया। । उनके इस प्रकार पूछनेपर लोमहर्षण-कुमार
ऋषि बोले-देवताओं के समान तेजस्वी सूतजी ! सूतजीने सुन्दर वाणीमें सूक्ष्म अर्थसे भरा हुआ न्याययुक्त आप कैसे और किस देशसे यहाँ आये है? अपने वचन कहा–'महर्षियो । आपलोगोंने जो मुझे पुराण आनेका कारण बताइये।
सुनानेकी आज्ञा दी है, इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है; सूतजीने कहा-महर्षियो । मेरे बुद्धिमान् पिता यह मुझपर आपको महान् अनुग्रह है। सम्पूर्ण धमकि व्यास-शिष्य लोमहर्षणीने मुझे यह आशा दी है कि पालमें लगे रहनेवाले पुराणता विद्वानोंने जिनकी ‘तुम मुनियोंके पास जाकर उनकी सेवामें रहो और वे जो भलीभाँति व्याख्या की है, उन पुराणोक्त विषयोको मैंने कुछ पूले, उसे पताो ।' आपलोग मेरे पूज्य है। जैसा मुना है, उसी रूपमें यह सब आपको सुनाऊंगा। बताइये, मैं कौन सी कथा कहूँ ? पुराण, इतिहास सत्पुरुषोंकी दृष्टि सूत जातिका सनातन धर्म यही है कि अथवा भिन्न-भिन्न प्रकारके धर्म-जो आज्ञा दीजिये, वह देवताओं, ऋषियों तथा अमिततेजस्वी राजाको वहीं सुनाऊँ।
वंश-परम्पराको धारण को–उसे याद रखें तथा सूतीका गह मर चपन मुनकर वे श्रेष्ठ महर्षि इतिहास और पुराणोंमें जिन मारवादी पापा। बहुत प्रसन्न हुए। अस्य शसनीय, विद्वान् लोमहर्षण- वर्णन किया गया है, उनकी रात करे, क्योंकि जब पुत्र उपश्रयाको उपस्थित देख उनके हृदयमें पुराण वेनकुमार राजा पृणुका यश हो रहा था, उस समय सूत सुननेकी इच्छा जापत हुई । उस यज्ञमें यजमान थे महर्षि और मागधने पहले-पहल उन महाराजकी स्तुति ही की शौनक, जो सम्पूर्ण शास्त्रोंके विशेषज्ञ, मेधावी तथा थी। उस स्तुतिले सन्तुष्ट होकर महात्मा पृथुने उन [वेदके] विज्ञानमय आरण्यक भागके आचार्य थे। ये दोनोको वरदान दिया। वरदानमें उन्होंने सूतको सूत सब महर्षियोंके राग श्रद्धाका आश्रय लेकर धर्म सुननेकौ नामक देश और मागधको मगधका राज्य प्रदान किया इच्छासे बोले।
था। क्षत्रिके वीर्य और माह्मणीके गर्भसे जिसका जन्म | शौनकने कहा-महाबुद्धिमान् सूतजी ! आपने होता है, वह सूत कहलाता है। ब्राह्मणोंने मुझे पुराण इतिहास और पुराणका शान प्राप्त करनेके लिये मनेका अधिकार दिया है। अपने धर्मका विचार ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ भगवान् व्यासजीकी भलीभाँति करके ही मुझसे पुराणकी बात पूछी है, इसलिये इस आराधना की है। उनकी पुराण-विषयक श्रेष्ठ बुद्धिसे भूमण्डलमें जो सबसे उत्तम एवं ऋषियों द्वारा सम्मानित आपने अच्छी तरह लाभ उठाया है। महामते ! यहाँ जो पद्मपुराण है, उसकी कथा आरम्भ करता हैं। श्रीकृष्णये श्रेष्ठ ब्राह्मण विराजमान है, इनका मन पुराणोंमें लग द्वैपायन व्यासजी साक्षात् भगवान् नारायणके स्वरूप है। रहा है। ये पुराण रान। सहते हैं। अतः आप इन्हें पुराण वे ब्रह्मवादी, सर्वश, सम्पूर्ण लोक पूति तथा अत्यन्त सुनानेकी ही कृपा करें। ये सभी श्रोता, जो यहाँ एकत्रित तेजस्वी हैं। उन्हींसे प्रकट हुए पुराणका मैंने अपने हुए हैं, बहुत ही श्रेष्ठ है। भिन्न-भिन्न गोत्रोंमें इनका जन्म पिताजीके पास रहकर अध्ययन किया है। पुराण सब हुआ है। ये वेदवादी ब्राह्मण अपने-अपने वंशको शास्त्रोके पहलेसे विद्यमान है। ब्रह्माजीने [कल्पके पौराणिक वर्णन सुनें। इस दीर्घकालीन यज्ञके पूर्ण आदिमें] सबसे पहले पुराणोंका ही स्मरण किया था। होनेतक आप मुनियोको पुराण सुनाइये। महाप्राज्ञ ! पुण्ण त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और कामके साधक एवं आप इन सब लोगोंसे पद्मपुराणकी कथा कहिये । पद्यको परम पवित्र हैं। उनकी रचना सौ करोड़ श्लोकोंमें हुई