श्री हनुमान बाहुक : तुलसीदास हिंदी पुस्तक मुफ्त पीडीऍफ़ डाउनलोड | Shri Hanuman Bahuk : Tulasidas Hindi Book Free PDF Download

श्री हनुमान बाहुक : तुलसीदास हिंदी पुस्तक | Shri Hanuman Bahuk : Tulasidas Hindi Book

श्री हनुमान बाहुक : तुलसीदास हिंदी पुस्तक | Shri Hanuman Bahuk : Tulasidas Hindi Book

श्री हनुमान बाहुक : तुलसीदास हिंदी पुस्तक | Shri Hanuman Bahuk : Tulasidas Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : श्री हनुमान बाहुक है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Tulasidas | Tulasidas की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 10.1 Mb है | पुस्तक में कुल 203 पृष्ठ हैं |नीचे श्री हनुमान बाहुक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | श्री हनुमान बाहुक पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu

Name of the Book is : Shri Hanuman Bahuk | This Book is written by Tulasidas | To Read and Download More Books written by Tulasidas in Hindi, Please Click : | The size of this book is 10.1 Mb | This Book has 203 Pages | The Download link of the book "Shri Hanuman Bahuk" is given above, you can downlaod Shri Hanuman Bahuk from the above link for free | Shri Hanuman Bahuk is posted under following categories dharm, hindu |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 10.1 Mb
कुल पृष्ठ : 203

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समर्पण * अनन्त श्र गुरुदेवजीके करकमलोंमें प्रभो ! आपकी लीला अपरंपार है । यद्यपि कई महानुभाबा ने पत्रों द्वारा आग्रह किया कि मानस-पीयूप' तथा ‘विनय-पीयूष के समान श्रीमद् गोस्वामीजीके अन्य ग्रन्थों की भी (पयूष) टीका लिखी जाय, तथापि ‘विनय-पीयूष के छपाने में जो अत्यन्त कष्ट हुआ, उससे जी ऊब गया । दूसरे, अब शरीरका ८४ वाँ वर्ष चल रहा है । वृद्धावस्थाका पूरा शृङ्गार शरीरने धारण किया है । शिर हाथ काँपते हैं, नेत्रकी दृष्टि मंद पड़ गयी है । स्मरण शक्ति का अत्यन्त ह्रास है ।इत्यादि कारणोंसे संकल्प तो यही था कि अब कुछ न लिखू गा । फिर भी श्री हनुमान वाहुक’ की ‘पद्यार्थ, बृहत् भूमिका एवं प्रयोग सहित टीका' तथा 'पीयूप वर्षिणी' टीका आपने खेल रचकर करा ही ली ।
अभी तक श्रीरघुनाथजीके चरित और गुण गाये थे, भक्तचरित ने गाया था । श्रीमहारानीजीने श्रीहनुमान्जीको मेरा रक्षक नियुक्त कर दिया और अपने अञ्जनीनन्दन शरण नामकरण किया, फिर भी मैंने उनका गुणगान नहीं किया, कदाचित् इस भारी दोपकी निवृत्ति के लिए यह लीला की ।
मोरि सुधारत सो सब भाँती ।।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती ।। | जो भी हो, यह आपकी लीला है, आपकी कृपा, करुणा, आश्रितवात्सल्यसिन्धुत्व ही है। अतः यह श्री हनुमान बाहुक पीयूष-वर्पिणी टीका' भी आपको ही सादर समर्पित है। आप इसे स्वीकार करे ।
सदैव आपका ही
अजनीनन्दनशरण कार्तिक श्रीहनुमत् जयन्ती सप्ताह २४-१०-६७

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3 Comments

  1. श्रीमान जी मुझे यह हनुमान बहुक खरीदनी है।plz

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