उत्पल्देव की शिवास्तोत्रावली : राजानक लक्ष्मण हिंदी पुस्तक | Utpaldeva Ki Sivastotravali : Rajanak Lakshman Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :
इस पुस्तक का नाम : उत्पल्देव की शिवास्तोत्रावली है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Kshemaraj | Kshemaraj की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : Kshemaraj | इस पुस्तक का कुल साइज 18.81 MB है | पुस्तक में कुल 378 पृष्ठ हैं |नीचे उत्पल्देव की शिवास्तोत्रावली का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | उत्पल्देव की शिवास्तोत्रावली पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, hindu
Name of the Book is : Utpaldeva Ki Sivastotravali | This Book is written by Kshemaraj | To Read and Download More Books written by Kshemaraj in Hindi, Please Click : Kshemaraj | The size of this book is 18.81 MB | This Book has 378 Pages | The Download link of the book "Utpaldeva Ki Sivastotravali" is given above, you can downlaod Utpaldeva Ki Sivastotravali from the above link for free | Utpaldeva Ki Sivastotravali is posted under following categories dharm, hindu |
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( रे ) सलगा | यह देख कर इस शासतर के सुल गुरु गगवान शंकर के हृदय में दया-माव उमड़ आया | वे शरीकंट के रूप में उततराखणड में सथित कैलास परवत पर घूमते-घामते नीचे उतर आए और दुरवाता नामक ऋषि को यों झादेश दिया-- तिम शेवागम का पुनरुदार कहो जिस से इस का मरचार सुचारु रूप में चलता रहे । भगवान के आदेश को पा कर महषि दुरवसा ने अयमवकादितय नामक एक मानसिक पुतर को उतपन किया और उसे उयदऔत-शेव-दरशन का उपदेश दिया । तयमबकादितय शयसवक नामक गुफा में चला गया और वहां जयमवक नामक एक मानसिक पुतर को जनम दिया | उस का पुतर भी चिंद पुरुष बन गया और अपने मानसिक पुतर को उपदेश दे कर सवयं आकाश-मणडल में अनतहहित हो गया । इस अकार मानसिक पुतर उतपच कर के उसे जञानोपदेश देने का करम चौदह पीढ़ियों तक जारी रहा । ये चोदह सिदध अनतमुख शरवसथा में ही रह कर शेव-दरशन का अचार करते रहे । इस परमपरा का पनदरहवां सिदध थी इस अदवत शासतर का गरकाणड पणडित बन गया पर किसी अंश में बहिमुख होने के कारण अपने पूरवजों की भाँति योग-बल से मानसिक पुतर को जनम देने में असमरथ रहा | लोकिक वयवहार करते करते एक बार उसकी दृषटि एक ऐसी बाहमण कनया यर पढ़ी जो सव-गुण-समपतर तथा शुभ लकषणों वाली थी। वह उस के माता-पिता के पातत गया और उन से उस के विषय में परारथना की । उन के सवीकार करने पर उस ने उस के साथ बाहय रीति से कवाह किया अर उसे अपने घर ले शराया | इस ( पनदरहवें पिद ) से पंगसादितय नामक एक पुतर उतपच हुआ । एक बार घूमते घामते संगसादितय शारदा-देश (कशमीर) में पहुँचा । यहां कदाचित इसके पराकतिक सौंदरय तथा मनोहर जलवायु को देख कर इस पर मुगध हुआ अथवा इस देश को शारदा ( सरसवती ) का कपापातर समक कर इससे आइएट हुआ आर सथायी रूप से यहाँ रहने लगा । संगमादितय का पुतर वरषादितय था। वरषादितय के पुतर का नाम अरुणादितय और उस के पुतर का नाम आननद था । आचारय आननद भी अपने पूरवजों की साँति अदवेत-रौव-दरशन का परकाणड पणडित था । आचारय शरी उतपल देव जी के गुरुदेव शाचारय सोमाननद जी इनहीं चाय आननद के सुपुतर थे शरीमान शराचाये अभिनव गुपत जी ने शरीतनतरालोक के छुततासवें शाहिक में उपयुकत वन में एक और विशिष बात का उललेख किया है। उस के
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