व्यक्तिविवेक | Vyaktiviveka

व्यक्तिविवेक : राजानक महिमाभट्ट हिंदी पुस्तक | Vyaktiviveka : Rajanaka Mahimabhatt Hindi Book

व्यक्तिविवेक : राजानक महिमाभट्ट हिंदी पुस्तक | Vyaktiviveka : Rajanaka Mahimabhatt Hindi Book के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : व्यक्तिविवेक है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Rewaprasad Dwivedi | Rewaprasad Dwivedi की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 56.62 MB है | पुस्तक में कुल 541 पृष्ठ हैं |नीचे व्यक्तिविवेक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | व्यक्तिविवेक पुस्तक की श्रेणियां हैं : dharm, inspirational

Name of the Book is : Vyaktiviveka | This Book is written by Rewaprasad Dwivedi | To Read and Download More Books written by Rewaprasad Dwivedi in Hindi, Please Click : | The size of this book is 56.62 MB | This Book has 541 Pages | The Download link of the book "Vyaktiviveka" is given above, you can downlaod Vyaktiviveka from the above link for free | Vyaktiviveka is posted under following categories dharm, inspirational |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी : ,
पुस्तक का साइज : 56.62 MB
कुल पृष्ठ : 541

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भूमिका काशचिदू० अनुविदूधु तथा करपमापुः ये रूपानतर मममट ने वयकतिविवेक से जयों के-तयो अबन लिए हैं । अनय उदाइरणों में भी मममट ने वयकतिविवेक के निरदेशों पर अपनी बुदधि चलाई है उदाहरणाय वयकतिविवेककार ने ते हिमालयमामनधय० पथ में सिदध चासमे के इदं पद को जोड में तहिसार पद में भी. इदं पद का परयोग आवशयक बतलाया था किनतु छनदोयोजना में उसके न जमने से कोई रूपानतर नददी दिया था--भगवनतं शूकिनस डृदमा परासशय तेनेंच ततपरामरथः कहे युकत न तदा ( पृ० २९२ ) । ममम ने पाठानतर में अनेन विस ऐसा परयोग दिखलायूा । निशचित ही उनहोंने महिमभड के मीन को सुखर करने की उदारता बरती किंतु वे उस मौत का कारण दूर न कर सके । गाहनतां मदिघा० पथ में महिमभटट ने विखबघ करियतां चराइततिसिरसुसताकषतिः को कुचनतवसतसियों वरादततयों सुसता- चतिं इस परकार बदला था । मममट ने उसे विखबध रचयनतु शूकरवरा मुसताहवतिं इसपरकार बदला । निशचित दो उनहें महिमिभटट के रूपानतर में विखबध-पद का अभाव खटका जिसके लिए उनहोंने असतमिय पद दे दिया था । फिनतु वे अपने पाठ में सूकरों की पाँतों को न ला सके जिसे स परवछोततीणंवराहयूथानि में कवि भुा न सका था । कदाचित मममट को ततति के साथ आए बहुवचन में वयथेता या. पुनरुकति परतीत हुई जिससे सूकरवराः पाठ करने पेर भी बे न छूट सके कयोंकि वर शबद वहाँ भी अनावशयक ही है सुसताकषति तो परतयेक सूंकर करता है १ इसंके अततिरितता करियतां की परकृति को वे रकषित ने रख सकें और उनहें रच भातु का परयोग करना पडा जिससे ऐसा कुछ कतरिम पथ सिकलता है कि जेसे मुसताकषति कोई तासे-बाने में फैका सूत है जिसका व बुनना है। फिर यदि चतुराई दिखढानी थी ते आतमनेपद के परकरम के निवांद में दिखलानी थी जो महिमभटट के ही समान मममट के पाठ में भी टू दी हुआ है वे गाइनताम अभयसयताम रचयनतु या कुवनतु मतासू-- इसपरकार आतमनेपद के उपकरम और उपसंदार में मममट भी महिमभटट के ही समान अपना पोठ जमा नहीं सके । थ दोषपूं के विवेचन में मममट के कावयपरकाश और वयकतिशिवेक की एकरूपता सबनामुविशेवा- डिमलने आदि से भी बहुत सपषट है। महिमभटट ने अपने दोषविवेचन की सवोपकता का संकेत दिया है ( १८४ ए० सवकृतिषु ० तथा अनतिम दलोक ) । वे अपने माप को. कवि भी सवीकार करते हैँ। मममर में दोनों ही बातें नहीं मिचती । उनका पदला नियतिकृत० पथ भी अपूरव यदू वसतु० इस छोचन के मंगरू पर निभेर है अतः कावयपरकाशकार का वयकतिविवेककार पर परभाव मानना संभव नहीं है । पिषय और भाषा का इतना अपषिक सामय मिलते पर मसमट के. कावयपरकाश से महिसभदध के वयकतिवितवेक को पूरवबरती न मानना तक को भें हो रुचे हृदय को तो नहीं रुचता । सममट का समय भोज और देमचनदर के बीच का है कयोंकि उदाततालझार में उनदोंने भोज पर निरमित

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