सूर सौरभ : डॉ. मुंशीराम शर्मा | Suur Shaurabh : Dr. munshiram Sharma

सूर सौरभ : डॉ. मुंशीराम शर्मा | Suur Shaurabh : Dr. munshiram Sharma

सूर सौरभ : डॉ. मुंशीराम शर्मा | Suur Shaurabh : Dr. munshiram Sharma के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : सूर सौरभ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Dr. munshiram Sharma | Dr. munshiram Sharma की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 15.1MB है | पुस्तक में कुल 342 पृष्ठ हैं |नीचे सूर सौरभ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | सूर सौरभ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Poetry

Name of the Book is : Suur Shaurabh | This Book is written by Dr. munshiram Sharma | To Read and Download More Books written by Dr. munshiram Sharma in Hindi, Please Click : | The size of this book is 15.1MB | This Book has 342 Pages | The Download link of the book "Suur Shaurabh" is given above, you can downlaod Suur Shaurabh from the above link for free | Suur Shaurabh is posted under following categories Poetry |

पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 15.1MB
कुल पृष्ठ : 342

यदि इस पेज में कोई त्रुटी हो तो कृपया नीचे कमेन्ट में सूचित करें |
पुस्तक का एक अंश नीचे दिया गया है : यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं, इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये |

स्वतन्त्र उपनाम कयत के होते हुए भी सूासागर से भाग को पत्रिका अनुनाद करा जा सका। यह एक स्याम्प रा है। बाशिषा १२, बात ध्या के राधा के साथ सेल्ने अंग भर भ्रमर गीत को ग्यमयी उहिब भागवत में है परमी ही मिलेगी। भारत में वर की बात है, परन्तु उनके
इस पहुँचने पर गोपि उन्हें चितो नही । में जो कुछ कहते हैं, उसे चुपचाप सुन लेती हैं। यर द्वारा य मा चन्देश पर उनको विर-म्या | हो जाता है। कुण के प्रति नै गये उनके उजाइने भी इतके तौ। २ ।। निशा र मुगुवा का भमेला भी नागवत में दिखाई नहीं देता, जो सूरसागर है अमर गीत का प्रयान अंश है। -डता का स्मरण अनी हुई एक गोपी चपने सामने गुनगुनाते हुए धमर को माया देखकर कुछ चटटी मते अवश्य कहे जाती है, न स भागत के अभाव में रामः बैंश भाला। का उफान पहीं भी दृष्टिीचर नहीं होता इसके अतिरि# भाबत मार्ग, विसर्ग माधि दश पिस का न करती हुई झड़ को मूर्धन्य स्थान देते हैं, पर दूरसागर में मुक्प का हे राधा-कृया कोही को ही प्रधानता दो गई है। भागवत जहाँ निति कूतक सा का वश करती है, तो सूरसागर से पाणमीणा गणों की प्रवृत्ति मार्ग में एमागे राती है। अतः सागर भागात का अरशः अनुवाद हो ।।
सूरसागर में प्राचार्य नाम के इस डी भी छाया ही है, उसका भूगों प्रतिबिम्ब नहीं। मन को बानि दाबी ३ रा न तो । स्वामी हितगापि ने साशनिक मारा है। साथ ही यह भी स्मरण (सने योग्य है कि दास की विरक्त होकर सर्व प्रभम मिस वैशर सम्म में दाचित हुए थे, यह पुष्टि सम्प्रदाय गौ था । दूरसागर में राधा के इतने अर्मिक महत्व
स्थापना, पृन्दावन को स्वर्ग-पमान वन (वल्लभाय सम्प्रदाय में मह पद गोल ग आता है।, (मामि पिप १६ ॥ १ % मूर पर थाबम से भefton बि सम्म माया । vिafal । म भाप सी हुई है। चिर सूर 43 है, अन्धा हो या भी कान है, सूरसागर उसके हार्दिक झा का भण्डार हैं, रामायण की भावमयी दौलानों का निके तन है और दे मार को बिन शैली का अंकन, जो भगशभक्ति के अन्दाधु ६ ॥ भए-हे स 11 में समा भर गए। ।। ५। । अनुगमन दौ कता । मइ बैशाता है, पथ-प्रदर्थ है, को अपने पौने बसाने वाला। है और सूर के बीचे एक नही, दो नदी, इ र शताब्धि हक भावुश मानस तते हैं, आज भी चल ६ ।।

Share this page:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *