तीन बेटियों की माँ | Teen Betiyon Ki Maa

तीन बेटियों की माँ : शुभा | Teen Betiyon Ki Maa : Shubha

तीन बेटियों की माँ : शुभा | Teen Betiyon Ki Maa : Shubha के बारे में अधिक जानकारी :

इस पुस्तक का नाम : तीन बेटियों की माँ है | इस पुस्तक के लेखक हैं : Shubha | Shubha की अन्य पुस्तकें पढने के लिए क्लिक करें : | इस पुस्तक का कुल साइज 400 KB है | पुस्तक में कुल 6 पृष्ठ हैं |नीचे तीन बेटियों की माँ का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इस पुस्तक को मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं | तीन बेटियों की माँ पुस्तक की श्रेणियां हैं : Stories, Novels & Plays

Name of the Book is : Teen Betiyon Ki Maa | This Book is written by Shubha | To Read and Download More Books written by Shubha in Hindi, Please Click : | The size of this book is 400 KB | This Book has 6 Pages | The Download link of the book "Teen Betiyon Ki Maa" is given above, you can downlaod Teen Betiyon Ki Maa from the above link for free | Teen Betiyon Ki Maa is posted under following categories Stories, Novels & Plays |


पुस्तक के लेखक :
पुस्तक की श्रेणी :
पुस्तक का साइज : 400 KB
कुल पृष्ठ : 6

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तुम समझते हो लड़कियाँ बेकार होती हैं। औरतों के कामों को आप जानते ही नहीं। अरे देखो मैंने सड़क बनाई, धान की रोपाई की, कपास चुना, कपड़े की फैक्ट्री में रीलिंग की, आलू खोदे, तीन-तीन बेटियों को जनम दिया, पाला-पोसा, क्या मैं बेकार हूँ? ये जो तुम चाय पीते हो, इसकी पत्तियाँ भी लड़कियाँ ही चुनती हैं।
और क्या-क्या नहीं करतीं ! इतने धंधे औरतें करती हैं कि गिनवाने मुश्किल। और तुम्हारा ये सूटर कोई एक पौंड का होगा। एक पौंड ऊन इतनी होती है कि दिन-रात लगकर तीन दिन में उसका सूटर बनता है जिसके मुझे बारह रुपये मिलते थे।
तब बच्चियाँ छोटी थीं तो सोचती थी घर में उनके पास बैठेबैठे बुनाई कर सकती हैं। लेकिन धंधा बड़े नुकसान का था। फिर ठेकेदार ने मीन-मेख निकालनी शुरू की और मुझ पर गलत नज़र डालने लगा तो मैंने ये धंधा छोड़ दिया। फिर आटे की फैक्ट्री में काम किया। बड़े काम छोड़े और पकड़े। दो चार मुर्गियाँ और बकरियाँ तो खैर पालती ही हैं। इसी तरह रूखा-सूखा चलता है।
ये जो तुम्हारी बीवी ने रेशमी साड़ी पहन रखी है, इसके धागे भी औरतें तैयार करती हैं। कीड़े पालती हैं। मुश्किल काम है। जाँघ में घाव हो जाते हैं। धान की रोपनी में भी पैरों में खारवे हो जाते हैं और कमर झुके-झुके टूट जाती है।
मुझ पर पैसे होते तो अपनी लड़कियों को पढ़ाती-लिखाती। उन्हें मास्टरनी बनाती या डाक्टरनी। तुम खुद पढ़े-लिखे हो। पैसे वाले भी दीखते हो। तुम लड़की का गर्भ क्यों गिरवाना चाहते हो। तुम समझते हो तुम्हारी लड़की कोई काम नहीं कर सकती। अरे आदमी कोई फालतू चीज़ नहीं। सौ काम हैं उसके करने को।

मेरी तीनों बेटियाँ साँवली हैं। उनकी काली आँखे हैं बड़ीबड़ी पके जामुनों जैसी और हाथ बड़े फुर्तीले हैं। खूब काम करती हैं। मेरी ही तरह वे तरह-तरह के धंधे पीटेंगी। पर फिर भी उनके होने से मुझे बड़ी तसल्ली है। मैं अकेली तो नहीं हैं न।।

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